परमब्रह्म सतपुरुष पिता से साक्षात्कार करना हो तो शाश्वत जीवन में प्रवेश करो” : धर्मगुरू नसी साहेब

भिलाई।गुरू पूर्णिमा व बाबा गुरूघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र सतगुरू बाबाअमरदास के जयंती समारोह में गुरूद्वारा सतनाम भवन शिवाजी नगर भिलाई में गुरूवाणी के दौरान बाबा गुरूघासीदास के छटवें वंशज धर्मगुरू नसी साहेब ने बताया कि परमब्रह्म सतपुरुष पिता से साक्षात्कार करने और भवसागर से मुक्त होने की पहली विधि शाश्वतता से संबंधित है क्योंकि शाश्वत जीवन ही वह निकटतम अनुभव है जिसमें प्राणी विश्राम पूर्ण अवस्था में होते है। अगर कोई शाश्वत में प्रवेश नहीं कर सकता तो उसका विश्रामपूर्ण होना असंभव है। तनाव से भरा व्यक्ति शाश्वत में प्रवेश नहीं कर सकता। क्योंकि? तनाव से भरा व्यक्ति हमेशा किसी उद्देश्य के लिए जीता है। शाश्वतता कोई वस्तु नहीं, आप उसका संग्रह नहीं कर सकते; आप उसे बैंक में जमा-पूंजी नहीं बना सकते, आप उससे अपने अहंकार को मजबूत नहीं कर सकते। निश्चित ही शाश्वत में जीना भौतिक दृष्टि से एक बहुत ही अर्थहीन कृत्य है जिसका उसके पार कोई अर्थ नहीं कोई उद्देश्य नहीं। उसका अस्तित्व किसी और चीज के लिए नहीं अपने ही लिए है।


आप कुछ पाने के लिए धन कमाते हो वह एक साधन है। आप घर बनाते हो, किस उद्देश्य से ? उसमें रहने के लिए बनाते हो, यह एक साधन है। इसीलिए बुद्धि जो बहुत हिसाबी-किताबी है तर्कवान है जो हमेशा उपयोगिता की भाषा में सोचती
है शाश्वतता में नहीं रह सकती, और जो बुद्धि हमेशा किसी उपयोगिता किसी उद्देश्य की भाषा में ही सोचती है वह सदा तनावपूर्ण रहती है। शाश्वतता हमेशा यहीं है। उसका कोई भूत- भविष्य नहीं। जन्म के साथ मृत्यु अभी और यहीं है। इसीलिए मृत्यु भी ध्यान के अति निकट है; क्योंकि वह कभी भविष्य में नहीं घटती। कोई कभी भविष्य में नहीं मरता। अतीत जा चुका, वह अब है ही नहीं इसलिए कोई उसमें मर नहीं सकते। भविष्य अभी आया नहीं, इसलिए कोई उसमें कैसे मर सकता है?
मृत्यु हमेशा वर्तमान में घटती है।
मृत्यु, ध्यान ये सभी वर्तमान में ही घटित होते हैं। इसलिए अगर आप मौत से भयभीत हो तो आप शाश्वत सत्य जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते। अगर आप भयभीत हो तो आपका जीवन व्यर्थ है–उपयोगिता की दृष्टि से व्यर्थ नहीं बल्कि इस अर्थ में कि आप कभी जीवन में किसी आनंद को अनुभव न कर सकोगे… निरर्थक।
साधकों क्या हो जाता है? वे बिना किसी भूत और भविष्य का हिसाब लगाए अभी और यहीं होते हैं बिना किसी परिणाम की चिंता किए इसीलिए लोग उन्हें अंधा कहते हैं। वे हैं। वे उन लोगों की नजरों में अंधे हैं जो बहुत हिसाबी-किताबी हैं और जो हिसाबी किताबी नहीं है उनके लिए वे द्रष्टा हैं। जो हिसाबी किताबी नहीं है वे शाश्वत जीवन को असली आंख, असली दृष्टि की भांति देखेंगे।
इसलिए पहली बात- ध्यान के क्षण में अतीत और भविष्य दोनों ही नहीं रहते। एक सूक्ष्म बात समझने जैसी है:–जब न भूत काल है न भविष्य तब क्या आप इस क्षण को वर्तमान कह सकते हो? वर्तमान केवल इन दोनों के बीच में हैं- भूत और भविष्य के बीच। यह संक्षेप है। अगर कोई भूत नहीं कोई भविष्य नहीं तब इसे वर्तमान कहने का क्या अर्थ है? यह निरर्थक है। शाश्वत सत्य को जानने वाले वर्तमान शब्द का प्रयोग नहीं करते। वे कहते हैं अनंत जीवन- शाश्वतता, शाश्वतता में प्रवेश करो।
हम समय को तीन कालों में विभाजित करते हैं : – भूत, वर्तमान, भविष्य। विभाजन गलत है बिल्कुल गलत है। समय वास्तव में भूत और भविष्य है। वर्तमान समय का हिस्सा नहीं है वर्तमान शाश्वतता का हिस्सा है। वह जो बीत चुका है वह जो आने वाला है समय है। जो है वह समय नहीं क्योंकि यह कभी बीतता नहीं यह सदा है। अभी सदा यहां है- सदा यहां है। यह अभी अंतहीन है शाश्वत है।
अगर भूत से आप चलो, आप कभी वर्तमान में नहीं आते। भूत से आप हमेशा भविष्य में चले जाते हो। ऐसी कोई घड़ी नहीं आती जो वर्तमान हो। भूत से आप सदा ही भविष्य में पहुंच जाते हो। वर्तमान से आप कभी भविष्य में नहीं जा सकते। वर्तमान से आप गहरे और गहरे… और भी वर्तमान में और वर्तमान में… वही अनंत-जीवन है।
हम इसे इस तरह भी कह सकते है; : भूत से भविष्य समय है। समय का अर्थ है कि सीधे सपाट मैदान में सीधी रेखा में चलना इसे या हम यूं कह सकते है; : यह क्षैतिज हारिजोन्टल है। जैसे ही आप वर्तमान में होते हो आयाम बदल जाता है। आप ऊर्ध्वाधर वर्टिकल गति करने लगते हो या ऊपर या नीचे ऊंचाई की ओर या निचाई
की ओर गति करने लगते हो। लेकिन तब आप सीधी सपाट एक ही रेखा में गति नहीं करते। कोई भी शाश्वत सत्य और परमब्रह्म सतपुरुष पिता को जानने वाला समय में नहीं, अनंतता में जीता है। ”वहां कोई समय नहीं होता।” समय होरिजोन्टल है सीधी-सपाट रेखा और सतपुरुष पिता का राज्य ऊर्ध्वाधर वर्टिकल है। वह शाश्वत है नित्य है। यह सदा यहीं है; केवल आपको ही समय से पार इसमें प्रवेश करना होगा।
कृत्य ही हो जाओ और कर्त्ता को भूल जाओ। जीवन जब तुम्हारा, मेरा या किसी अन्य का जीवन नहीं रह जाएगा। वह मात्र जीवन है। जब आप द्वैत से अद्वैत हो जाते है तो भौतिक जगत में नहीं होते तब शाश्वत सत्य की परम स्रोत, सतपुरुष पिता के चरणों से निकलने वाली परम धारा के में होते हो तब तुम शाश्वत जीवन में होते हो। आप मात्र एक प्रवाहमान ऊर्जा हो गए फिर ”शाश्वत जीवन आपका है” और यही से आप जन्म जन्मांतर के चक्र में फंसे नश्वर आत्मा को भवसागर से मुक्त करने में सफल होंगे।