पंडरिया। नगर के महामाया मंदिर में ज्योति कलश प्रज्वलित कर भक्तिपूर्वक पूजा पाठ किया जा रहा है।पंडरिया के महामाया मंदिर का इतिहास 500 वर्ष से अधिक का है। स्वंभू माता मंदिर महामाया देवी पंडरिया जमीदारी जो आज़ादी के पहले छत्तीसगढ़ राज का सबसे बड़ी स्वतंत्र जमीदारी के रूप में स्थापित था। 484गांव की जमींदारी, जिसकी राजधानी मैकल श्रेणी पर्वत मालाओं के तलहटी में में बसा नरसिंह देव एवम महादेव बूढ़ादेव के धाम कामठी में था।
उस समय पंडरिया का कोई वजूद नहीं था।कामठी से जमींदारी का कार्य संचालन होता था। कालांतर में पंडारी कापा उर्फ प्रतापगढ़ जो आज पंडरिया के रूप में विद्यमान हैं।जमींदारी का मुख्यालय बनाया गया। पंडरिया महामाया देवी उस समय कामठी में विराजित थी,सौ तालाबों के बीच, राजपरिवार के पंडरिया आने से कुल देवी महामाया कामठी ने तत्कालीन राजा को स्वप्न आदेश दिया। वर्तमान महामाया मन्दिर परिसर उस काल में बांस का घनघोर जंगल था।उसी बीच खुदाई से श्री माता का प्रादुर्भाव हुआ।उसी स्थल पर कामठी के काले पत्थरों से भव्य मन्दिर का निर्माण हुआ।

तत्कालीन जमींदार द्वारा पाठक परिवार को रतनपुर महामाया से पंडरिया महामाया देवी की पंचोपचार पूजन के लिए लाया गया।तभी से पंडरिया राज परिवार के द्वारा विधि विधान से वर्ष में दो बार नवरात्रि पर्व पर विशेष पूजा अर्चना आयोजित किया जाता हैं।
1307 ज्योति प्रज्वलित-नगर के महामाया मंदिर में प्रतिवर्ष तेल ज्योति प्रज्वलित की जाती है।इस वर्ष मंदिर में 1307 ज्योति प्रज्वलित की गई है।नगर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों व अन्य जिलों से श्रद्धालु महामाया मंदिर में मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कराते हैं।