20 मार्च विश्व गौरैया दिवस : ताकि हमारे घरों में चहकती रहे नन्हीं गौरैया…. जाने इतिहास और महत्व

राजू वर्मा सीजी मितान

हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है ताकि घरों में चहकने वाली इन नन्हीं चिड़ियों की घटती आबादी को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके और इनके संरक्षण के लिए कदम उठाए जाएं। इस दिवस की शुरुआत 2010 में भारत की नेचर फॉरएवर सोसाइटी द्वारा की गई थी। आज यह एक वैश्विक पहल बन चुकी है, जिसमें 50 से अधिक देश संरक्षण अभियानों में भाग ले रहे हैं।…

गौरैया की घटती चहचहाहट
गांवों की शांत सुबह से लेकर शहरों की व्यस्त गलियों तक, कभी गौरैया की चहचहाहट आम बात थी। ये नन्हीं चिड़ियां घरों, मंदिरों और पेड़ों में बसेरा करती थीं। लेकिन समय के साथ, इनकी संख्या तेजी से घटती गई और अब यह एक दुर्लभ दृश्य बन चुकी हैं।

गौरैयाओं के लुप्त होने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें शहरीकरण, प्रदूषण और कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग शामिल हैं। इन चुनौतियों को देखते हुए संरक्षण कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने इनके बचाव के लिए कदम उठाने शुरू किए हैं।

विश्व गौरैया दिवस का इतिहास और महत्व
2010 में पहली बार मनाए गए विश्व गौरैया दिवस का उद्देश्य इन पक्षियों की घटती संख्या के प्रति जागरूकता फैलाना था। यह अभियान तेजी से लोकप्रिय हुआ और 2012 में दिल्ली सरकार ने गौरैया को राज्य पक्षी घोषित किया। इस पहल को वैश्विक स्तर पर सराहना मिली और दुनिया भर के लोग गौरैया संरक्षण अभियान में शामिल होने लगे।…

इस दिवस के मुख्य उद्देश्य हैं:

गौरैयाओं के सामने आने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
शहरी विकास को पक्षी अनुकूल बनाना।
संरक्षण अभियानों को बढ़ावा देना।
बच्चों और समुदायों को गौरैया की अहमियत समझाना…

गौरैया का पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान
गौरैया भले ही आकार में छोटी हों, लेकिन इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है:

प्राकृतिक कीट नियंत्रण: गौरैया कीड़ों और छोटे-मोटे कीटों को खाकर जैविक संतुलन बनाए रखती हैं।
परागण और बीजों का प्रसार: ये पक्षी फूलों और बीजों के जरिए जैव विविधता को बढ़ावा देते हैं।
पर्यावरण सूचक: गौरैयाओं की मौजूदगी एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत मानी जाती है।…

गौरैया संरक्षण के लिए प्रयास
गौरैयाओं को बचाने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं:

“सेव द स्पैरो” अभियान – इस पहल के तहत गौरैया बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 में जागरूकता अभियान का समर्थन किया।
“कूडुगल ट्रस्ट” (चेन्नई) – स्कूल के बच्चों की मदद से 2020 से 2024 के बीच 10,000 से अधिक घोंसले बनाए गए।
“अर्ली बर्ड अभियान” (मैसूर, कर्नाटक) – यह अभियान बच्चों को पर्यावरण संरक्षण और पक्षी बचाने के लिए प्रेरित करता है।…