सिंदूर खेलने के पश्चात नम आंखों से मां को दीं गई विदाई, अगले बरस जल्दी आने का दिया आमंत्रण

आशीष दास

कोंडागांव/बोरगांव । विजयादशमी के दिन बोरगांव के दुर्गा पूजा पंडाल में सिंदूर खेला की रस्म पूरी की गई। इस दौरान बोरगांव के सार्वजनिक दुर्गा पंडाल में बड़ी संख्या में महिलाएं जुटी। बड़ी संख्या में महिलाएं सुबह ही पूजा पंडाल में पहुंच गईं। ज्यादातर महिलाएं लाल और सफेद रंग मिली-जुली साड़ी पहन रखी थीं। सफेद रंग की साड़ियों पर सिंदूर खूब फब रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे होली का माहाैल हो।बंगाली परंपरा के अनुरूप महिलाओं ने मां दुर्गा की प्रतिमा की पूजा कर एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। इस रस्म में सभी महिलाओं ने एक दूसरे के गालों पर सिंदूर लगाया। सुहागिनों ने पान के पत्तों और पूजन सामग्रियों से मां दुर्गा की पूजा अर्चना के बाद सेंदुर खेला की रस्म पूरी की।बताते चलें कि अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश देने वाले विजयादशी पर्व पर मां दुर्गा की प्रतिमा को विदा करने से पहले बंग समुदाय में सिंदूर खेलने की परंपरा है और इसे सिंदूर खेला के नाम से ही जाना जाता है। सिंदूर खेला का अर्थ यानी सिंदूर से खेलना है। इस परंपरा को बोरगांव वह आस पड़ोस के बंगाली बाहुल्य गांव में बंग समाज की महिलाओं ने भी जिंदा रखा है। अब इस बंग संस्कृति के साथ साथ समाज की हर वर्ग की महिलाएं शामिल होने लगी है। सिंदूर खेला को लेकर मान्यता है कि दशमी के दिन सिंदूर खेला करने से सुहागिनों के पतियों की उम्र लंबी होती है। दूसरी मान्यता है यह भी है कि दुर्गा पूजा में मां दुर्गा अपने मायके आती हैं। जिस तरह लड़की के मायके आने पर उसकी सेवा की जाती है, उसी तरह मां दुर्गा की भी खूब सेवा की जाती है। सिंदूर खेला की रस्म केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए ही होती है। बोरगांव  में भी महिलाओं ने इस अनुष्ठान को पूरा किया।हर तरफ उड़ती सिंदूर ने माहौल को और भक्तिमय बना दिया। सिंदूर खेलने के पश्चात नम आंखों से मां की विदाई दी गई और अगले वर्ष फिर जल्दी आने का निमंत्रण दिया गया।