शहर व ग्रामीण अंचलों में 22 अप्रैल को मनाया जाएगा अक्षय तृतीया

   अंडा। शहर सहित ग्रामीण अंचलो में 22 अप्रैल को अक्षय तृतीया मनाया जाएगा । वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है ।किसी भी अच्छे काम की शुरुआत के लिए इस मुहूर्त को बेहद शुभ माना जाता है। अक्षय यानी अन्त फल देने वाला और तृतीया यानी तीसरा दिन बैशाख महीने की  तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है ।हिन्दू घर्म में ऐसी पौराणिक मान्ययता है । कि इस दिन जो भी काम किया जाए उसका कई गुना फल मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में स्थित मंदिरो में सुबह से ही भक्तों का ताता लगा रहता है। मंदिरो में भक्तों की भीड़ उमड़ती है इस दिन भक्तो द्वारा अन्न दान ,जल दान एवं अपनी इच्छा अनुसार दान दिया जाता है। मांन्यता है कि इस दिन दान देने व शुभ कार्य करने का अक्षय फल प्राप्त होता है।


नदी में स्नान का है, घड़े में जल का दान महत्त्व , अक्षय  तृतीया के दिन पवित्र नदी या जल में स्नान और दान किया जाता है।अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के घड़े में जल भर कर मंदिरो में दान किया जाता है , इसी दिन से
घरो एवं दुकानों में मिट्टी के घडो में जल भर कर पीने की शुरुवात की जाती है ।


     बच्चो द्वारा किया जाता है पुतरी पुतरा का विवाह
अक्षय तृतीया के ही दिन छोटे बच्चो द्वारा मिट्टी का पुतरा पूतरी का विवाह किया जाता है,इस दिन की तैयारियो में बच्चे कई दिन पहले से जुट जाते है, बच्चे पुतरी पुतरा के विवाह के लिए जोरो से तैयारिया करते है,इस दिन बच्चे पुतरा पुतरी के विवाह के  मंडप बनाते  है, सच की शादी की तरह ही बच्चो द्वारा पुतरा पुतरी का विवाह किया जाता है। आज के दौर में पुतरा पुतरी विवाह को गुड्डा गुड्डी विवाह के नाम से जाना जाता है। पुतरा पुतरी के विवाह का रिवाज मात्र छत्तीसगढ़ में है।
              पंडित आर्चय  महेंद्र पाण्डेय जी  का कहना है कि शुभ मुहूर्त के कारण अक्षय को लोग अपने बेटे बेटियो का विवाह करते है ।
      क्यों मनायी जाती है अक्षय तृतीया  पौराणिक मान्यताओ के अनुसार भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम का जन्म इसी दिन हुआ था। परशुराम ने महर्षि जमदाग्नि और माता रेणुका देवी के घर जन्म लिया था। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करने का भी विधान है। दूसरी कथा यह भी प्रचलित है इस दिन माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी । राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर अवतरित करने के लिए हजारों वर्ष तक तप कर उन्हें धरती पर लाए थे। इसलिए इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना विशेष महत्त्व है । बालोद जिला के अंतिम छोड गांव ग्राम डौकीडीह के समस्त ग्रामीणों द्वारा सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक चावल और  दाल का खिचड़ी बनाकर खाते हैं। यहां के परपंरा पुराने रीतिरिवाज आज भी चलते आ रहे हैं।