भाजपा प्रत्याशी संतोष मोदी लहर के भरोसे, कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश पूर्व मुख्यमंत्री के आवरण के उम्मीदों के सहारे , दोनो ही पार्टियों के कार्यकर्ताओ मे न उत्साह न उमंग , सीजी मितान के सहयोगी वरिष्ठ पत्रकार नांदगांव दीपांकर खोबरागडे की यह रिपोर्ट आप भी पढ़े…

राजनांदगांव//लोकसभा चुनाव 2024 निश्चित रूप से देश की राजनीति में बड़ा भूचाल लाने वाला है राजनीतिक पार्टियों को अपनी पार्टी के एजेंडे पर काम कर वह सब करना है जिसकी चाहत का सब्जबाग दिखाया गया है। देश के अंदर अनेकों राजनीतिक पार्टियों हैं और खासकर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा जिन राज्यों में है उन राज्यों से पृथक हमारा छत्तीसगढ़ प्रदेश राजनितिक शांति के लिए एक उदाहरण है झीरम की घटना को छोड़ दे तो। दूसरी ओर प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्राकृतिक संसाधनों को समेटे हुए है शांत सौम्य और हरियाली के साथ ग्रामीण जनजीवन मे खुशहाल और परस्पर भाईचारा और सौहार्द का भाव लोगों को आकर्षित करता है खास कर अन्य राज्यो के लोगों को यही कारण है कि इस प्रदेश में जब भी कोई अपने व्यवसाय या नौकरी को लेकर कार्य करता है तो उन्हे प्रदेश में अपना आशियाना तैयार करने की ठान लेता है यहीं रहने लग जाते जिसके अनेकों उदाहरण लोगों के सामने होंगे। यही कारण है की चुनावो मे भी प्रदेश का वातावरण अन्य राज्यो की तुलना मे बेहद ही सामान्य सा रहता है । लोकसभा चुनाव अब धीरे-धीरे ऊफान पर है क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से भी बहुत ही बड़ा है लोकसभा क्षेत्र का अपना एक इतिहास है कांग्रेस से शिवेन्द्र बहादुर सिंह,मोतीलाल वोरा, देवव्रत सिंह, सांसद हुआ करते थे। भाजपा से डॉक्टर रमन सिंह जब सासंद निर्वाचित हुए थे तो उन्हें मोतीलाल वोरा को हराने के एवज में केंद्रीय उद्योग वाणिज्य राज्य मंत्री बनाया गया था फिर उनकी किस्मत ने जो करवट बदला तो डॉ रमन सिंह सत्ता का वह केंद्र बिंदु रहे और छत्तीसगढ़ प्रदेश में 15 साल लगातार भाजपा सरकार मे बतौर मुख्यमंत्री लंबी पारी का रिकॉड बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया और आज वह प्रदेश की भाजपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के सम्मान जनक पद को सुशोभित कर रहे है। उसके बाद भारतीय जनता पार्टी प्रदीप गांधी,मधुसूदन यादव ,अभिषेक सिंह को लोकसभा के लिए टिकट दिया गया और वे लोग भी सांसद बने फिर राजनीति में किसी की इंजन ने काला धुआं छोड़ा और गाडी अटक गई तो किसी को बलिदान देना पड़ा बाकी डिप्लोमेसी के चलते शिकार हो गए। वर्तमान मे छत्तीसगढ़ प्रदेश के सबसे अहम सीट के रूप में चिन्हाकित हो चुका है । राष्ट्रीय मीडिया की भी नजरे और केंद्रीय भारतीय जनता पार्टी की भी नजरे राजनांदगांव लोकसभा पर टिकी हुई है। कारण बिल्कुल स्पष्ट है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का चुनाव मैदान में प्रत्याशी के रूप में होना मुख्य कारण यह है कि केंद्रीय योजनाओं और भारतीय जनता पार्टी की आईडियोलॉजी के तोड़ के रुप मे जवाब देते रहना जैसे “राम वन गमन पथ” , गौ माता की सेवा के रूप में गोबर और गोमूत्र को खरीदने का कीर्तिमान बनाने का काम रहा इन योजनाओं से किसे फायदा और किस नुकसान हुआ इसका मूल्यांकन तो अब सरकार ही लग पाएगी पर सीधे तौर पर वैचारिक राजनीति के रूप में इन योजनाओं को आंका जाता रहा। रह गई बात चुनाव की इसमें कांग्रेस पार्टी ग्रामीण क्षेत्रों में अपना दबदबा बनाए हुए नजर आ रही है अब तक के दौरे को लेकर जिस स्थिति को देखा जा रहा है उसमें भले फौरी तौर पर कांग्रेस के लोगों में नाराजगी देखी गई पर उसका फायदा परोक्ष रूप से भाजपा को उठाते देखा नाराज कार्यकर्ता भी बागी होने के बजाय भूपेश बघेल के नजदीकी बढ़ाने की होड में लग गए बड़ा चेहरा होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी भूपेश बघेल के करीब ग्रामीण जन् नज़र आ रहे हैं। वोटो के हिसाब से कांग्रेस पार्टी और लोकसभा प्रत्याशी भूपेश बघेल अपने पक्ष में साधने के लिए कितनी कसरत कर पाते हैं यह तो मतदान के पश्चात ही पता चल पाएगा। दूसरी और भारतीय जनता पार्टी ने सांसद रहे संतोष पांडे को पुनः टिकट देकर एक बड़ा दांव तो खेला है जहां भारतीय जनता पार्टी में स्वर्णिम टिकट के अवसर को लेकर अनेक वरिष्ठ और युवा चेहरे भी संघर्रत थे पर संघ के करीब होने के और राष्ट्रीय अध्यक्ष के निकटता के चलते और लोकसभा में अपने वाक्य अभिव्यक्ति के बूते संतोष पांडे टिकट लाने में कामयाब रहे शहरी क्षेत्र में ज्यादातर लोगों मे चर्चा संतोष पांडे के पक्ष में नजर आ रहा है वही सारे कार्यकर्ता खुश है ऐसा कह पाना संगठन के लिहाज से उपयुक्त नज़र नही आता ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के साथ मंडल अध्यक्ष और जमीनी कार्यकर्ता इस बात को लेकर नाराज है कि सासंद से सीधे संपर्क पांच सालों में कभी नहीं हो पाया कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर चर्चा सरगर्म है।यह अलग बात है कि भारतीय जनता पार्टी अपने पैटर्न के अनुरूप मैनेजमेंट को सनसाधने की कोशिश में ज्यादा जुटे रहती है। अब तक देखा जाए तो प्रदेश के बड़े नेताओं और स्टार प्रचारक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव , छत्तीसगढ प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव सांय, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, उपमुख्यमंत्री अरुण साव, मंत्री लखन लाल देवांगन, और संगठन के अनेक बड़े कद्दावर नेताओं ने भी संतोष पांडे के कैंपेनिंग के लिए राजनांदगांव लोकसभा का दौरा कर चुके हैं, पर बड़े नेताओं के आने के बावजूद अगर ग्रामीण मंडलो के अध्यक्ष के साथ जमीनी कार्यकर्ताओ मे कही व्यक्तिगत सम्मान को लेकर नाराजगी रही तो संतोष पांडे को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है! जिससे इनकार नहीं किया जा सकता यह अलग बात है की राजनीति और सत्ता के करवट का भाग्योदय की कोइ निश्चिता नही होती। देखना यह है कि संतोष पांडे से नाखुश कार्यकर्ता आत्मीयता पूर्वक काम करने में समर्पित होकर आगे बढ़ते हैं या मन मसोस कर रह जाते है! लोकसभा चुनाव का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है और बड़े केन्द्रीय नेताओं के आगमन भी होने जा रहा है । ऐसी परिस्थितियों में असंतोष और हताशा से भरे कार्यकर्ताओं में आखिर संतोष पांडे कितना संतोष का संचार भर पाते हैं, यह तो बदलते समीकरणों से ही स्पष्ट हो पायेगा।