हलषष्ठी व्रत रखकर महिलाओं ने की पूजा,बच्चों के दीर्घायु व उत्तम स्वास्थ्य की कामना की


पंडरिया। नगर सहित ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्रों में शनिवार को महिलाओं ने हलषष्ठी व्रत रखकर अपने संतान के लिए लम्बी उम्र की कामना की।दोपहर बाद महिलाओं ने सगरी बनाकर पूजा अर्चना किया।सगरी एक तालाब के प्रतीक के रूप में बनाई जाती है।जिसमें जंगली पौधे ,कांशी आदि लगाकर पूजा अर्चना किया गया।पूजा पश्चात माताओं ने अपने बच्चों के पीठ पर कपड़े का पोत लगाकर दीर्घायु का आशीर्वाद दिया।
कुछ लोगों ने हलषष्ठी पूजा शनिवार को किया, वहीं कुछ लोग इस व्रत को रविवार को रखेंगी।


हलषष्ठी व्रत भाद्रमास की कृष्‍ण षष्‍ठी को मनाया जाता है।यह जन्माष्टमी के दो दिन पहले मनाया जाता है।इस व्रत को करने के लिए सुबह संकल्‍प लिया जाता है तथा पूजा अर्चना किया जाता है।व्रत के पश्चात पूरे दिन हल से जोती गई और खेत में उगाई गई चीजों को नहीं खाया जाता है।बिना हल चले स्वयं से उगे पशहर चांवल,भाजी,भैस के दूध,दही व घी का उपयोग फलाहार के रूप में किया जाता है।माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और खुशहाली के लिए यह व्रत करती हैं।

इस व्रत को भगवान कृष्‍ण के बड़े भाई बलराम के जन्‍मोत्‍सव के रूप में रखा जाता है तथा अपने बच्‍चों की खुशहाली के लिए प्रार्थना की जाती है। इस व्रत को करने वाली माताओं के लिए पूजा में व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य होता है,कथा श्रवण के बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है।
ग्वालिन की कथा पढ़ी जाती है -हलषष्ठी व्रत में गर्भवती ग्वालिन वाली कथा पढ़ी जाती है। ग्वालिन के प्रसव काल पास था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चली जाती है। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने एक बेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई।

गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों बेच देती है। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो जाता है। इस पाप के कारण बेरी के नीचे पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाकर चला गया।ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात बताई कि उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी गांव की महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था।