कृषि महाविद्यालय मर्रा में गाजर घास उन्मूलन जागरूकता का हुआ आयोजन….विशेषज्ञों ने कहा फसलों के साथ साथ मानव के लिए भी हानिकारक है गाजर घास

पाटन।कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, मर्रा (पाटन) एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सयुंक्त तत्वावधान में गाजरघास उन्मूलन जागरूकता दिवस का आयोजन कृषि महाविद्यालय मर्रा में किया गया। जिसमें कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. ओ. पी. परगनिहा, प्राध्यापकगण डॉ. ए. कुरैशी, डॉ. नितिन कुमार तुर्रे, डॉ दीपिका देवदास, डॉ. रूथ एलीजाबेथ एक्का, एवं छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इस क्रार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. श्रीकांत चितले एवं डॉ. नितिश तिवारी ने गाजरघास उन्मूलन पर प्रकाश डाला। डॉ. चितले ने विद्यार्थियों को बताया की यह घास सन 1955 में अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं के आयात से भारत पहुंचा था। इस घास को चटक चादनी, सफेद टोपी आदी नामों से भी पहचाना जाता है।

यह विदेशी घास फसलों को तो नुकसान पहुंचाती ही है साथ ही मानव एवं अन्य जीवों के स्वास्थय एवं पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती है। इसके स्पर्श से खुजली, एलर्जी और चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो रही है। यह एक शाकीय पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उगकर मानव एवं प्रकृति के सभी जीवों के लिए गंभीर समस्या बनती जा रही है। गाजरघास पानी मिलने पर वर्ष भर फल-फूल सकती है लेकिन वर्षा रितु में इसका अधिक अकुरण होने पर यह तेजी से बढ़ता है। यह घास एक वर्ष में तीन-चार बार अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है एक वर्ष में इसकी तीन से चार पीढ़िया पूरी हो जाती है। हमें इसके उन्मूलन हेतु गंभीर प्रयास करने होंगे।

डॉ. नितिश तिवारी ने बताया कि इस घास को नष्ट करने के लिए हमें फूल आने से पहले ही जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। उखाड़ने से पहले हाथों में दस्ताने अवश्य पहनें। इसके नियंत्रण का दूसरा तरीका रासायनिक खरपतवारनाषक ग्लूफोसिनेट अमोनियम 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में, 2,4-डी 2 मि.ली. दवा 1 ली. पानी में या 20 प्रतिशत साधारण नमक का घोल के छिड़काव करने से नष्ट हो जाता है। उन्होनें इसके जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन कीट जाईगोग्रामा बाईकोलोराटा को वृहद स्तर पर गाजरघास में छोड़ने की अनुशंसा की ।

डॉ. परगनिहा ने बताया की इस घास का एलिलोपैथिक प्रभाव दूसरे पौधों पर पड़ता है। जिसके कारण फसल में 30 से 40 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी हो सकती है। यह आज कल खेतो के अलावा सड़क किनारे भी साधारणता दिखाई दे रही है। उन्होंने कृषि महाविद्यालय के रावे छात्रों को निर्देशित किया कि आस पास के गांवों में जाकर गाजरघास उन्मूलन हेतु लोगों को जागरूक करें।