‘पाठकों की पाती’ में आज पढ़िए लेखक विजय मानिकपुरी की कलम से…”मैं बेहया,बेशरम हूँ साहब”
कोई गुस्सा से दूर फेंकेकोई स्नेह से हटा देंफिर भी अपनी छापछोड़ जाता हूँक्योंकि मैंबेहया, ‘बेशरम’ हूँ जनाब मुझमें भी गजब का शौक हैमन्दिर-दरगाह-जनाजे में न चढूंफिर भी फूल खिल.