अनूप वर्मा चारामा
चारामा-नवोदय मे चयन हुए छात्र शासन के नियमो के आगे नवोदय में प्रवेश लेने से वंचित होता जा रहा है। स्कुल मे प्रवेश नही मिलने से छात्र एंव उसका परिवार मानसिक रूप से प्रताडित हो रहे है। और यह सब शासन प्रशासन के अनसुझे नियम के कारण हो रहा है। गरीब माता पिता अपने बच्चे के प्रवेश के लिए प्रदेश के केबीनेट मंत्री से लेकर कलेक्टर तक गुहार लगा चुके है, लेकिन शासन के नियम ऐसे की केबीनेट मंत्री से लेकर कलेक्टर तक नियम के सामने नत्मस्तक होने नजर आ रहे है। लेकिन छात्र को इंसाफ नही मिल पा रहा है। और नियमो के आगे छात्र के भविष्य और उसके मनोबल को तोड दिया गया है। मामला चारामा विकासखण्ड के आदिवासी बालक आश्रम सिरसिदा में 05वी तक अध्ययन कर चुके छात्र श्रीअंश पिता कुलेश्वर सलाम निवासी ग्राम नयानार जिला नारायणपुर का है। जो कि पिछले शिक्षा सत्र में कक्षा पाँचवी उत्तीर्ण किया है। जिसने कक्षा पहली से पाँचवी तक की शिक्षा बालक आश्रम मे की। मा पिता ने नक्सल क्षेत्र और बच्चे की अच्छी शिक्षा दीक्षा के लिए बच्चे को अपने से दूर कर उसे चारामा विकासखण्ड में पढाया ताकि वो एक अलग माहौल मे रहकर शिक्षा ले सके। और नारायणपुर के सुदुर अंचल का यह छात्र होनहार ही नहीं, उँचे सपने देखने वाला छात्र रहा। जिसने कक्षा पहली से लेकर कक्षा पाँचवी तक कर कक्षा में उच्च अंक लाकर शाला में अपना विशेष नाम दर्ज कराया। छात्र की शिक्षा के प्रति रूचि और कुछ अलग कर गुजरने की चाहत देखकर शिक्षक भी छात्र को पढाने में उत्साहित रहे और शिक्षको को भी उसके पाँचवी कक्षा में आने का इंतजार रहा। शिक्षक से लेकर छात्र सभी ने पहले दिन से छात्र के नवोदय में प्रवेश के लिए लक्ष्य बनाकर उसे तैयारी कराई। और कि गई तैयारी के अनुसार छात्र ने ने परीक्षा देकर अच्छा परिणाम भी लाया। और सिरसिदा बालक आश्रम सहित विकासखण्ड के अन्य आश्रम से एक मात्र इस छात्र का चयन नवोदय में हुआ। जबकि पुरे विकासखण्ड से 26 बच्चो को चयन नवोदय में हुआ है। जिसमे से आश्रम से सिर्फ एक बच्चे का चयन हुआ है। शासन के नियमानुसार नवोदय परीक्षा में चयनित छात्र अपने ही जिले में अध्ययनरत् होना चाहिए और उसके पास अपने ही जिले का निवासप्रमाण पत्र होना चाहिए। लेकिन इस नियम में सबसे बडी खामी यह है कि अन्य जिले में अध्ययनरत् छात्र इस परीक्षा से पुर्ण रूप से वचिंत हो रहे हैं। क्योकि ऑनलाईन फार्म में स्पष्ट यह कालम है कि “क्या आप का निवासप्रमाण पत्र और पॉचवी में अध्ययन करने की जिला एक ही है” यह नियम उसके चयन के समय सामने आ रहा है,

परीक्षा के लिए पहले से ही अपात्र घोषित हो जायेगा। ऐसे में कई छात्र इन मेधावी परीक्षाओ से पुर्ण रूप से वंचित हो जायेगे. उनके लिए शासन के नियम अनुसार इन परीक्षाओ में कोई जगह नहीं है। ऑनलाईन फार्म भरने के दौरान अन्य जिलो में अध्ययनरत् छात्रो के लिए किसी भी प्रकार का कॉलम नही होने के चलते श्रीअंश के द्वारा नारायणपुर जिले का निवास प्रमाण पत्र जो कि उसके पास पहले से है के तहत उसने कॉलम को हाँ करके भर दिया। लेकिन नियमानुसार उसे न करना था, और अगर न करता तो वह पहले दिन से ही परिक्षा से वंचित हो जाता। जब उसने कॉलम में हॉ भर दिया। तब परीक्षा फार्म आगे बढ़ा। परीक्षा फार्म कम्पलीट होने के बाद छात्र ने 10 जनवरी को नारायणपुर जिले के परीक्षा केन्द्र मे परीक्षा दिलाई और छात्र ने नारायणपुर जिले की 80 सीटो में 15वा रैकं समान्य केटेगरी में पास किया। लेकिन एक नियम के चलते छात्र अच्छे रैंक के बाद भी चयन से वंचित होता जा रहा है। इसी छात्र की तरह अन्य कई छात्र भी प्रवेश से वंचित हो रहे है।
शासन के इस नियम को गलत इसलिए भी कहाँ जा सकता है। क्याकि वर्तमान समय में जो लोग शासकीय नौकरी में अन्य जिलो में पदस्थ है. या व्यापार व्यवसाय, धंधा और मजदुरी के लिए अगर अन्य जिलो में जाकर कार्य करते है या जो पालक अपने बच्चो को अपने निज घर से अन्य जिलो के स्कुलो में अच्छी शिक्षा के लिए बाहर जिलो में पढने के लिए भेज रहे है. वह शासन के इस नियम के आगे पुर्ण रूप से अपात्र हो जायेगे। और ऐसे पालकी के छात्र कभी भी नवोदय जैसी परिक्षाओ में शामिल नहीं हो सकते है।
शासन का ऐसा नियम दो साल पहले 2022 से लागु हुआ। जबकि नवोदय संस्था की स्थापना 1986 में केन्द्र सरकार द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य भी ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाओं को सामने लाने लिए बनाया गया था, 36 सालो तक नवोदय के नियम के अनुसार कोई भी छात्र किसी भी जिले का निवासी कही भी अध्ययनरत् हो वह इस परीक्षा के लिए पात्र था और चयन हो सकता था, लेकिन दो साल पहले आये इस नियम ने श्री अंश जैसे कई बच्चों के भविष्य को अधर में डाल दिया है और नवोदय जैसे परीक्षाओ में चयन के लिए उनके और उनके परिजनों के सपनो को धराशायी कर रहा है।
जबकि केन्द्र सरकार अपने ही नियमो मे फस रही है। केन्द्र सरकार के शिक्षा का अधिकार नियम 2009 के तहत 06 वर्ष से 14 वर्ष के सभी बच्चो को मुफत और अनिवार्य शिक्षा दिया जाना है, और इसी नियम के तहत सुदुर अंचल और नक्सल क्षेत्रो के परिजन आगे आकर अपने बच्चो को सुविधा अनुसार अन्य जिले या आश्रम व्यवस्था के तहत पढा रहे है। वही आश्रम व्यवस्था के तहत आश्रम में भी दुर अंचल के छात्र छात्राएँ ही अध्ययन करते आये है। और कर रहे है। लगभग आश्रमो मे अन्य जिले के और गरीब वर्ग के ही छात्र छात्राएँ पढ रहे है। ऐसे में नवोदय के इस नियम जिसमे अपने ही जिले में पाँचवी अध्ययनरत् होने पर ही नवोदय की परीक्षा में बैठने का नियम गरीबो और आश्रम व्यवस्था को खत्म कर रहा है।
अब इस नियम के कारण वंचित छात्र छात्राएँ और पुर्व नियम लागु करने की माँग करनी होगी, अन्यथा बडी संख्या छात्र छात्राएँ नवोदय परीक्षा से वंचित होगे। फिलहार परिजन के साथ साथ हर वर्ग शासन के इस नियम को पुर्णतः गलत ढहरा रहा है। जिस पर नवोदय को भी विचार करने की आवश्यक्ता है। I
और फिलहाल इस सत्र मे श्रीअंश जैसे छात्र जिन्होने कडी मेहनत कर 80 सीटों में अपना 15वाँ रैंक लाया और यह साबित किया कि वह नवोदय जैसी परिक्षाओं के लिए हर स्तर पर उचित छात्र है, का चयन छग सरकार को आगे आकर करना होगा। ताकि छात्रो का मनोबल बढे और वे अपने भविष्य के लिए सोच सके ।