पाटन।”छेरछेरा” नाम सुनते ही जेहन में छत्तीसगढ़ की संस्कृति और त्योहार याद आते हैं, लेकिन पाटन क्षेत्र में इस नाम के एक और मायने है सांस्कृतिक कार्यक्रम .
जी हां छत्तीसगढ़ी कहानी हास्य छत्तीसगढ़ी गाने संजोए लोक कला मंच छेरछेरा ने आज अपने 25 वर्ष पूरे कर लिए इन 25 वर्षो में लोगों को हँसाता गुदगुदाता रहा है।

25 वर्ष पूरे होने पर पाटन में वर्षगांठ समारोह का आयोजन किया गया,कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हेमन्त देवांगन ने कहा कि
छेरछेरा सांस्कृतिक संस्था छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं अपनी सौंदर्यता और विलक्षणता के लिए मशहूर है शायद यही कारण है की आज भी लोकमंच छेरछेरा अपनी सतरंगी छटा बिखेर रहा है।उन्होंने कहा कि मैं विगत 25 वर्ष से छेरछेरा कार्यक्रम से जुड़ा हुआ हूं इस संस्था से न जाने कितने कलाकार दिए हैं ,उन्होंने संस्था के उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ आर्थिक सहायता राशि प्रदान की।इस अवसर पर संस्था के कलाकारों ने अपनी अपनी बात रखी और यादे ताजा की।अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त शिक्षक भास्कर सावर्णी ने भी अपने विचार व्यक्त किए, कार्यक्रम का संचालन शिक्षक नरोत्तम साहू ने किया

ये है छेरछेरा का इतिहास….
छत्तीसगढ़ी लोक कला मंच छेरछेरा का स्थापना 24 मई 1998 को क्षेत्रीय विधायक भूपेश बघेल (परिवहन मंत्री) मध्यप्रदेश एवं हेमंत देवांगन पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष पाटन के आतिथ्य में कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ था जिसे टिकेन्द्र नाथ वर्मा के संचालन एवं संयोजन में प्रारंभ किया गया था, कहानी के लेखक एवं गीतकार रामेश्वर प्रसाद निर्मल एवं संतोष रघुवंशी के निर्देशन के साथ-साथ कुछ ऐसे शशक्त कलाकार में चुन्नू पटेल, स्व. पंचराम बनपेला, स्व. नरेन्द्र क्षत्रीय, स्व. केशव साहू इन सभी कलाकारों के त्याग और समर्पण से छेरछेरा को लम्बी उंचाई मिली।
छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा अन्य राज्य में भी अपना विशेष प्रस्तुती के माध्यम से जनमानस के बीच अपनी छटा बिखेरती रही। छत्तीसगढ़ में कहानी को लेकर मंच में प्रस्तुत करने वाली सांस्कृतिक संस्था कारी (रामचंद देशमुख) के बाद छेरछेरा दूसरे स्थान पर रहा। छेरछेरा कहानी समाज और परिवार को जीवन जीने का संदेश देती है।
संचालक टिकेंद्र नाथ वर्मा ने बताया कि चार लोगों ने मिलकर लगातार संगीत का अभ्यास किया,वाद्य यंत्र नही थे तो रामायण मंडली से तबला और हारमोनियम मांग कर रियाज़ किया,फिर धीरे धीरे कलाकारों को जोड़ा उन्हें अभ्यस्त किया और फिर 24 मई 1998 को लोक कला मंच “छेरछेरा” की पहली प्रस्तुति ग्राम पंदर में दी गई।