चिरपोटी का जॅंवारा उत्सव होता है लोक आनुष्ठानिक

अंडा।  संपूर्ण भारत सहित छत्तीसगढ़ में भी देवी आराधना शक्ति और प्रकृति पूजा के रुप में की जाती है। यहां पर चैत्र और क्ंवार नवरात्रि में जॅंवारा बोने की परंपरा है। इस लोक अनुष्ठानिक और अनुशासित आयोजन ग्राम चिरपोटी में देखने को मिलता है। यहां के देवी भक्तों, पंडों, बइगा, लंगूरवा, जस गीत गायक सभी बेहद उत्साहित रूप से नौ दिनों तक प्रकृति माता की पूजा में लीन रहते हैं। वहीं अठवाही के दिन अष्टमी हूमन करके नौवे दिन स्थानीय मचादूर नाला के स्वच्छ जल में जॅंवरा विसर्जित करते हैं। जहां संपूर्ण गांव के लोग दर्शक के रुप में उपस्थित होते हैं।

लोक संस्कृति कर्मी और जनजाति शोधार्थी राम कुमार वर्मा ने बताया कि चिरपोटी में नौ दिनों तक जॅंवारा जिसमें गेहूं, तिल, मूंग, उड़द, जौ, अरहर सरसों आदि सात प्रकार के बीजों को अंकुरित करके यह जानने की कोशिश की जाती है कि आने वाले वर्षों में फसलें कैसी होगी? ऐसे में जब जॅंवरा लहलहाने लगती है। तब कृषक बेहद प्रसन्नचित होते हैं कि आने वाले वर्षों में फैसले बहुत अच्छी होगी। यह प्रकृति पूजा और प्रकृति परीक्षण का लोक पर्व है, जिसे छत्तीसगढ़ में जॅंवारा उत्सव कहा जाता है।

यहां के शीतला माता मंदिर समिति के अध्यक्ष इंदरमण साहू सहित अन्य सदस्य देवेंद्र साहू, सुमन लाल साहू, श्यामा चरण देवदास, नागेंद्र साहू, कमल नारायण चंद्राकर, देव नारायण शर्मा, नागेंद्र कुमार साहू, राजू साहू, श्यामा चरण देवदास सहित ग्रामीणों द्वारा सक्रियता से सहयोग जॅंवरा उत्सव में प्रतिवर्ष किया जाता है। वहीं जस गीत के युवा गायक चंदू साहू सहित अन्य गायक नौ दिनों तक माता की आराधना में लगे रहते हैं।

जॅंवारा विसर्जन के दिन स्थानीय कृषकों द्वारा मचांदूर नाले में अपने नलकूप का पानी दो-तीन दिन पूर्व भर दिया जाता है, ताकि स्वच्छ जल जॅंवारा विसर्जन के लिए उपलब्ध रहे। वहीं रास्ते में देवी भक्तों द्वारा दर्शकों आदि के लिए शीतल पेयजल, नींबू का शरबत  आदि व्यवस्था करके अपनी सेवा भावना का प्रदर्शन किया। इससे ग्रामीणों में जन सहयोग और आपसी सद्भावना की भावना का उदाहरण देखने को मिला।  इस तरह चिरपोटी का जवारा उत्सव बेहद उत्साहजनक वातावरण में प्रतिवर्ष संपन्न होता है।