*भाजपा में मधुसूदन यादव की लोकप्रियता का मिथक तोड़ने दूसरे भाजपा नेता का उद्भव हो ही नहीं पाया*

*⏩ कांग्रेस को सत्ता और भूपेश पर भरोसा*
खैरागढ़ विधानसभा चुनाव की स्थिति निश्चित रूप से एक युवा नेता को असमय खोने के बाद बनी है। कहने को तो स्वर्गीय देवव्रत सिंह रजवाडे (महलों) की दहलीज से निकल कर राजनीति भी विरासत में ही मिली थी कांग्रेस में लंबे समय तक रजवाड़ों की ताकत रही है। चाहे स्वर्गीय शिवेंद्र बहादुर सिंह की दबंग छवि की राजनीति की अपनी एक अलग अदा के रूप में जानी पहचानी गई चाहे स्व: रश्मि देवी सिंह , स्वर्गी गीता देवी सिंह और पश्चात देवव्रत सिंह ने भी युवावस्था से ही राजनीति के पाशो को खेलना और प्रशासनिक बारीकियों, तकनीकी जानकारी की बेहतर समझ रखना उनकी खूबी में से एक थी। समय ने करवट बदला और असमय देवव्रत सिंह काल के गाल में समा गए और स्थिति खैरागढ़ में उपचुनाव की बनी क्योंकि कांग्रेस पार्टी सत्ता में है और सत्ता की ताकत “जिसकी लाठी उसकी भैंस” वाली स्थिति जैसें ही होती है ऐसे में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के साथ पूरी सत्ता नजर आ रही हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी पूर्व में रहे विधायक के लंबे समय के कार्यकाल और संसदीय सचिव जैसे पद पर रहे कोमल जंघेल को कांग्रेस की यशोदा वर्मा के खिलाफ खड़े है। जातिगत समीकरण की बात करें तो जातिगत समीकरण आपस में बटता दिखाई दे रहा है। वहीं भारतीय जनता पार्टी का मैनेजमेंट कमजोर नजर आ रहा है क्षेत्र के दौरे में लोगों से चर्चा करने के दौरान भाजपा के लोग ही काफी नाराज नजर आ रहे हैं उनका दबी जुबान से कहना है कि भाजपा के खास करके राजनांदगांव से आकर यहां मैनेजमेंट जो संभाल रहे हैं उनके भले ही रिश्तेदारी छुईखदान मैं हो पर उनकी छवि आज भी जनप्रिय नेता के रूप में 15 वर्षों के सत्ता के बाद में भी जनता के मर्म को समझने और पार्टी के कार्यकर्ताओं को साधने का हुनर जुटा पाने में नाकामयाब रहे है। यह अलग बात है की खाता बही के मैनेजमेंट में भले महारत हासिल रखते हो पर धरातल का मैनेजमेंट भाजपा का कमजोर नजर आ रहा है ऐसे में कई क्षेत्रों में भाजपा के प्रचार और जमीनी जुड़ाव की बात करें तो घुटने टेकने जैसी स्थिति पर खड़े हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता चाहे और रायपुर से या मध्य प्रदेश से स्टार प्रचारक के रूप में लाए जा रहे हो कहीं वोटों में तब्दील कर पाए ऐसा भी नजर नहीं आ रहा है और राजनांदगांव के जन नेता के रूप में जिनकी पहचान है जिनके नाम को क्षेत्र का बच्चा बच्चा भी जानता हूं और पहचानता है यहां तक कि छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता भी जन नेता को अपने क्षेत्र में अपने गांव में लाने के लिए लालायित रहते हैं उन्हें भी खासी जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी ने दी होगी वैसा भी नजर नहीं आ रहा है। पर क्षेत्र में अंततः मांग तो मधुसूदन यादव की ही दिखाई दे रही है ऐसा क्या करिश्मा है कि लोग अब तक मधुसूदन यादव के सुनहरे कार्यकाल के बाद अब आम जिंदगी जीने वाले मधुसूदन यादव को लोग नहीं भुला पा रहे हैं ऐसी लोकप्रियता लोगों को बाल सफेद करने के बाद भी हासिल नहीं हो पाती। अब देखना यह है कि मतदान के बाद दोनों ही पार्टी चुनाव में किस पर भारी पड़ती है और सबसे बड़ी बात यह है की जीत का अंतर कितने वोटों से होगा यह सबसे महत्वपूर्ण चर्चा का मुद्दा रहेगा।