अंडा। छत्तीसगढ़ का प्रथम मंडाई मेला बाबा मोहदीपाट जिला मुख्यालय बालोद से 49 कि मी व दुर्ग से 30 कि.मी. उतर दिशा में स्थित हैं। ग्राम देवता के नाम से ही गांव का नामकरण मोहदींपाट रखा है,प्राचीन नामकरण में शिवनाथ नदी के एक ओर 18 गढ़ वदूसरी ओर 18 गढ़ कुल 36 गढ़ो में एक मेंहदीगढ़ ही मोहदींपाट है। पूर्व सरपंच मुकेश साहू ने बाताया की प्राचीनकाल में देवस्थल मंदिर हैं जो नीम पेड के निचे में मोहदींपाट बाबा विराजमान हैं।
पहले कई वर्ष पहले इस जगह के आसपास जँगली क्षेत्र था, व मन्दिर नीम पेड़ के नीचे स्थपित है, कहा जाता है कि बाबा मोहदींपाट रात्रिकाल में सफेद घोड़े पर सवार होकर ग्राम के चारो ओर भर्मण करते थे,जिन्हें ग्रामीणों ने घोड़े के टॉप व घुंघरुओं की आवाज स्पस्ट सुनाई पड़ती थी।

मोहदींपाट बाबा मंदिर पुजारी राजेन्द्र शर्मा और मंदिर के अध्यक्ष- नरसिंग देवांगन ने बताया कि देवस्थल एक पवित्र क्षेत्र ,इस क्षेत्र में गन्दगी के फैलने पर इसका लोगो पर कुप्रभाव पड़ता है,देवस्थल मोहदींपाट आदिकाल से श्रद्धा एव विशवास का केंद्र रहा है ,जनमानस हजारो की संख्या में अपनी मनोकामनाओ को पूर्ण करने के लिए भगवान बाबा मोहदीपाट के दर्शन हेतु आया करते थे, पहले बलि प्रथा थे,लेकिन आज यह प्रथा समाप्त कर दी गई है।
भगवान मोहदीपाट बाबा के नाम से ही इस ग्राम में आदिकाल से मेला का आयोजन हो रहा है। इस वर्ष चुनाव का महौल भी हैं। आज दिनांक 3 नवंबर रविवार को भव्य मंडाई मेला महोत्सव का आयोजन रखा गया हैं। इस अवसर पर रात्रि में 10 बजे छत्तीसगढ़ी लोक कला नाच पार्टी गवई के हीरा – जेवरा महासमुंद वालों का आयोजन रखा गया है।
मेला का आयोजन गोवर्धन पूजा व आज भाई दूज के पश्चात के रविवार को हो रहा है,प्रतिकूल दशाओ में भी मेला के आयोजन में कोई परिवर्तन नही होता है, यह क्रम निरतर जारी है, मेले में हजारों की सख्या में श्रद्धासुमन अर्पित करते है, यह धार्मिक स्थल मोहदींपाट बाबा मेला महोत्सव में 15 दिन पहले मीना बाजार लगना शुरू हो जाता हैं, यहां बहुत दूर दराज से बडे बडे झुले वाले आकर अपना झुला का दृश्य दिखाते हैं। यहां के मेला महोत्सव में आनंद लेने बहुत दूर दूर के लोग आते हैं।











