पाटन।गुरू सतनाम रावटी के तहत ग्राम छाटा (पाटन) पंहुचे गुरूद्वारा भंडारपुरी धाम से आए धर्मगुरू नसी साहेब ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बताया की वैश्विक प्रयासों के अनुरूप समावेशी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए समाज के सभी वर्गों का सशक्तिकरण सुनिश्चित करना होगा। यद्यपि प्राचीन काल से बिना किसी भेदभाव के एक समान मानवीय विकास सामाजिक विमर्श का एक अभिन्न अंग रहा है, परंतु समकालीन वर्षों के आर्थिक और सामाजिक संकटों को देखते हुए सामाजिक न्याय की आवश्यकता बहुत अधिक महसूस की जा रही है।
विशेषज्ञ इस बात पर लगभग एकमत हैं कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण के बिना समाज का सतत विकास संभव नहीं है। चुनौती न केवल लोगों की दैनिक समस्याओं का समाधान करने की बल्कि उन्हें समग्र रूप से सशक्त बनाने की भी है। इसके लिए, हमें गरीबी, लैंगिक असमानता, बेरोजगारी, मानवाधिकारों के दुरुपयोग और समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी एवं स्वतंत्रता, सम्मान तथा नैतिक मूल्यों के संबंध में बिना किसी भेदभाव के एक पूर्ण समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है केवल तभी इन समस्याओं का समाधान कर मनुष्य को आर्थिक और सामाजिक विकास के पथ पर आगे ले जाया जा सकता है।
सामाजिक न्याय की बात करते हुए मैं परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास द्वारा की गई कुछ प्रमुख टिप्पणियों का उल्लेख करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने दृढ़ता से अनुभव किया कि भारत के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण यह था कि देश के लिए वास्तविक संपदा उत्पन्न करने वाले मेहनतकश श्रमवीर वर्ग और महिलाओं की न केवल उपेक्षा की गई, उनका दमन करते हुए जमकर शोषण भी किया गया।
दर्शनशास्त्र विषय हमें मानवीय संबंधों और न्याय के बारे में कई मूल्यवान बातें सिखाते हैं। दर्शनशास्त्र से हमें पता चलता है कि आत्मा के स्तर पर हम सभी एक समान हैं और प्रत्येक इंसान में परमब्रह्म सतपुरुष पिता का सतनाम अंश होता है, परन्तु व्यवहार में लोग समाज के निचले तबके से संबंध रखने वाले लोगों के साथ अपने पालतू जानवरों से भी बदतर व्यवहार करते हैं। सरकार के अस्पृश्यता के विरूद्ध सख्त कानूनों के बावजूद भी लोग आज के दौर में अस्पृश्यता संबंधी दर्दनाक घटनाओं के बारे में सुनते हैं,कहीं बंदी बनाकर उनसे श्रम करवाने की घटना सामने आती है, कहीं बेटियों की शारिरिक शोषण की घटना सामने आती है, कहीं लोगों को मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, कहीं दुल्हे को घोड़े पर चढ़ने पर पाबंदी है, कहीं छात्रों को किराए में शैक्षणिक कार्य के लिए आवास नहीं दिया जाता है, कहीं भेदभावपूर्ण ही हिंसा होते है, कहीं सार्वजनिक नलकूपों से जल लेना प्रतिबंधित होने सहित सामाजिक कुरीतियों का अंबार लगा हुआ है।
परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास जी ने शोषित वर्गों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे काफी हद तक सफल हुए पर सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता और गरीबी उन्मूलन से जुड़ा है। हमारे देश में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों ने पिछले दशकों में बहुत सारी असमानताओं का सामना किया है। यह एक तथ्य है कि उन्हें उचित शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलती। उनमें योग्यता की कोई कमी नहीं है। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के जीवन का है। डॉ. अंबेडकर बहुत ही विनम्र पृष्ठभूमि से थे। उन्हें स्कूलों और कॉलेजों में कई अपमानों, असमानताओं सहित छुआछूत का शिकार होना पड़ा, लेकिन उन्होंने बडी दृढ़ता के साथ अध्ययन किया और दुनिया के तीन सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनपर परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास जी द्वारा स्थापित अपृश्यता मुक्त सतमार्गी सतनामी समाज का भी सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था। उन्होंने जो संविधान लिखा वह समावेश के माध्यम से सशक्तिकरण के परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास जी के प्रयासों में मील का पत्थर साबित हुआ है। अस्पृश्यता निवारण के लिए सर्वोच्च योगदान देने वाले परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास जी हम सभी के लिए एक मिसाल बने। उन्होंने जाति व्यवस्था के उन्मूलन और महिलाओं के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
सामाजिक न्याय का अर्थ है कि जाति, धर्म, लिंग के भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत विकास के लिए समान अवसर प्रदान किया जाए। इन भिन्नताओं के कारण किसी भी व्यक्ति को अपने विकास के लिए आवश्यक सामाजिक परिस्थितियों से वंचित नहीं रहना चाहिए। सामाजिक न्याय की अवधारणा सामाजिक समानता की नींव पर आधारित है।भारतीय संविधान ने हमें यह अवधारणा दी है कि सामाजिक न्याय केवल उसी समाज में प्राप्त किया जा सकता है, जहां मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न किया जाता हो। संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17 भी संविधान की प्रस्तावना में अच्छी तरह से निहित सामाजिक न्याय के विचार को दर्शाते हैं। देश की जनता को इस तथ्य को समझना चाहिए कि कुछ अराजक शक्तियां इन सामाजिक अंतर्विरोधों का अपने निहित स्वार्थों के लिए उपयोग कर रही हैं और अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को जाति,धर्म,गरीबी,बेरोजगारी आदि में उलझाकर उन्हें भेदभाव के जाल में जकड़े रहने के लिए मजबूर कर उनका आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक शोषण किया जा रहा है ।

- June 5, 2023