अंडा। गांवों के साथ शहर में भी दिपावली त्यौहार के समय गौरा गौरी पर्व मनाने की परंपरा है। इसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से ही हो जाती है। इसके पहेले गांवों में गौरा गौरी पर्व मनाने की परंपरा है। इसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से ही हो जाती है।
ग्रामीण क्षेत्र काफी उत्साह में गौरा-गौरी का पर्व मनाया जाता है। पर्व मनाने के लिए पहले दिन गौरा चौरा पर रंग रोगन का काम किया गया। गौरा गौरी पर्व की शुरुआत धनतेरस की रात से होती है। धनतेरस के दिन वार्डवासी बाजे-गाजे के साथ गौरा-गौरी को जगाने का काम करते हुए गीत गाते हैं। दूसरे दिन गौरा चौरा की पूजा कर फिर से गीत गाया जाता है। तीसरे दिन दीपावली पर्व में रात के दौरान पूरे ग्राम में गौरा गौरी की बारात निकाली जाती है और ज्योति कलश के साथ पहुंचकर गौरा गौरी की मूर्ति स्थापित की जाती है।



गौरा-गौरी की मूर्ति बनाने के लिए तालाब से मिट्टी लाकर उसे बनाकर गौरा-चौरा में स्थापित कर पूजा की जाती है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के दिन मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
पर्व को लेकर गौरा-गौरी चौरा का किया जा रहा रंग-रोगन। गौरा-गौरी पर्व सामाजिक सौहार्द्रता का प्रतीक
गौरा गौरी पर्व समाज में सामजिक सौहार्द्रता का प्रतीक माना जाता है, जो आज भी गांवो में कायम है। ग्राम अंडा क्षेत्र सहित चिंगरी, कुथरेल, विनायकपुर ,निकुम,जंजगिरी, चंदखुरी, मटिया, ओडारसकरी ,ओटेबंद,सिरसिदा,परसदा,डंगनिया,देवरी ख,नाहंदा, गुरेदा,सलौनी,खप्परवाड़ा,आमटी,तिरगा,भोथली,झोला,अंजोरा,रसमडा,खपरी कला,गनियारी,बोरई, नगपुरा सहित आस पास गांवों कई पीढ़ियों से गौरा-गौरी पर्व मनाते आ रहे हैं । यह पूरे समुदाय में भाईचारे की भावना को बढ़ाता है। गांव के बैगा शालिक राम निर्मलकर ने कहा कि गौरा,गौरी का पूजा-पाठ करके गांव में गली भ्रमण कराते हैं उसके बाद शीतला तालाब में विसर्जन करते हैं। इस अवसर पर गांव के बैगीन कामता निर्मलकर मीना वाघमारे,सोनकुंवर पटेल, सीता साहू, ने कहा कि गौरा-गौरी पर्व मनाए जाने से पर्व की खुशी दोगुनी हो जाती है।
