संजय साहू
अंडा। दुर्गग्रामीण विधान सभा क्षेत्र के ग्राम बोरई में श्रीमद्भागवत कथा चल रहे हैं , जिसमें संत श्री महाराज बता रहे हैं कि मनुष्य के गृहस्थ जीवन में द्वन्द्व है,सुख है दुख है,जय है पराजय है,लाभ है तो हानि भी है। द्वन्द्वों से परे उठकर मोक्ष और मुक्ति के लिए मानव जीवन मिला है। भगवान राम की लीला अनुकरणीय और कृष्ण की लीला श्रवणीय लीला कहा गया है। भगवान की लीला को निरंतर श्रवण करने वाला,चिंतन करने वाला,और अनुसरण करने वाला सहज ही भव सागर को पार कर लेता है। भगवान तर्क से परे हैं यहां कुतर्क की कहीं जगह नही है।
दुर्ग ग्रामीण क्षेत्र के ग्राम बोरई में आयोजित भागवत कथा सप्ताह में कृष्ण जन्म लीला प्रसंग में भगवताचार्य स्वामी संत श्री निरंजन महाराज लिमतरा आश्रम ने कहा। कृष्ण की लीला श्रवणीय है हम अपने कानों को समन्दर बना लें और कथा की सरिता हमारे जीवन में आते रहे,आते रहे। संसार का प्यास कभी छोड़ता नही जीवन तो तब धन्य होता है जब परमात्मा को पाने का प्यास जागता है। जिस दिन भगवान के चरणों की प्यास जाग जाये समझ जाना जीवन में मेरी भगवान की कृपा बरस गई।निश्छल भाव से भगवान से कोई एक रिस्ता जोड़ लो, भाई का, बहन का पुत्र का, मित्र, सखा सखी का और जीवन भर उसका निर्वहन वैसे ही करो जैसे सांसारिक रुप में करते हैं । प्रभु सानिध्य का लाभ आप स्वं महसूस करने लगेंगे, जीवन में हर क्षण उत्सव होगा।

देवकी की आठवां संतान समझकर जिस बालिका को, जो एक बालिका के रुप में योगमाया थी, जैसे ही कंश उसे मारने का भाव अपने अंदर लाता है , उसका पाप का घड़ा भर जाता है और विनाश का द्वार खुल जाता है|आज समाज में लड़कियों को गर्भ में मारने का जो निकृष्ट प्रयास होता है यह महापाप की श्रेणी में है|सागर मंथन से निकले रत्नों में एक रत्न कन्या है। इसे सौभाग्य रुप में स्वीकार करें,क्योंकि सृजन का मूल माध्यम स्त्री को ही चुना गया है, कृष्ण जन्मोत्सव का सजिव चित्रण से पुरा श्रोता समाज झुम उठा ,समुचा गाँव गोकुल मय होकर महोत्सव मनाये। स्वामी जी ने उपस्थित माताओं से कहा भारत भूमि मर्यादा की भूमि है त्याग की भूमि है,समर्पण की भूमि है आप माता देवकी और यशोदा बनेंगी तो निश्चित ही आपके आंगन में भी राम और कृष्ण खेलेंगे। इस कथा को सुनने अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर आनंद ले रहे हैं।