बैगा आदिवासियों के आय का स्त्रोत है चार बीज,स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक


पंडरिया।ब्लाक के वनांचल क्षेत्र अंतर्गत इस वर्ष चार फल लग चुके हैं।वनांचल में चार के सभी पेड़ों में भारी मात्रा में चार के फल लगे हुए हैं।जिसे तोड़ने का कार्य भी कुछ लोगों द्वारा शुरू कर दिया गया है।पंडरिया उप वनमंडल के पश्चिम रेंज के जंगलों में चार के पेड़ अधिक हैं।जो आदिवासियों के जीवन यापन का हिस्सा है।बैगा आदिवासी चार का बीज एकत्रित कर इसे समिति के माध्यम से वन विभाग को बेचते हैं।चार से चिरौजी निकलता है जो काफी किफायती होता है।चार के फल को पकने के बाद खाते हैं,इसका स्वाद खट्टा मीठा होता है।चार फल के बीज को तोड़कर चिरौंजी निकाला जाता है।

चार के पेड़ की ऊंचाई 20 से 30 फिट की होती है।इसका फल मार्च महीने में लगता है,जो अप्रेल के अंत तक पक कर तैयार हो जाता है।इनमे फल लगने के बाद से रखवाली में बैगा आदिवासी जुट गए हैं।


कच्चे में तोड़ देते हैं-बैगा असिवसी इन चार के फलों को कच्चे में तोड़ देते हैं।इसे पूरी तरह पकने नहीं देते हैं।जिससे उनको कम लाभ प्राप्त होता है।पूरी तरह पका हुआ चार का बीज बड़ा व परिपक्व होता है,जिसमें सभी मे चिरौंजी निकलती है।जबकि कच्चे चार में अधिकतर बीज में चिरौंजी नहीं होती है।जिसके चलते कच्चे चार बीज कम कीमत पर बिकते हैं।
व्यंजनों में होता है उपयोग-चार के चिरौंजी का उपयोग अनेक व्यंजन बनाने में होता है।मिठाई ,खीर सहित अनेक पकवान में चिरौंजी डाला जाता है।इसका स्वाद काफी स्वादिष्ट होता है।
आयुर्वेदिक महत्व भी होता है– चिरौंजी स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।आयुर्वेदिक दृष्टि से काफी उपयोगी माना जाता है।वैद्यराज गिरिजा कुमार शुक्ला ने बताया कि चार व चिरौंजी आयुर्वेदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।चार हृदय रोग,वात-पित्त के लिए लाभदायक है।साथ ही बुखार ,जलन,प्यास व शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
इन गांवों में मिलते हैं चार बीज-वनांचल ग्राम नेऊर, कुंडापानी, कोदवागोडान, बिरहुलडीह, पंडरीपानी, कांदावानी, झुमर, भाकुर, भेलकी, पुटपुटा, अधचरा, देवानपटपर, बांगर, सारपानी , सेजाडीह, बांसाटोला, धुरसी, कुशियारी, अमनिया, सेंदूरखार, बाहपानी, रुखमीदादर, चियांडांड, तेलियापाी, चतरी, छीरपानी, बदना, कौआनार, सहित लगभग 40 से अधिक गांवों में चार के पौधे हैं।

नहीं मिल रही सही कीमत- बैगा आदिवासी मूल रुप से वन एवं वनोपज पर निर्भर है। इनको वनोपज का सही कीमत नहीं मिल पाती है।शासन द्वारा चार का समर्थन मूल्य 126 रुपये प्रति किलोग्राम तय की गई है।लेकिन बैगा आदिवासी बिचौलियों को चार कम मूल्य पर दे देते हैं।इसका मुख्य कारण है शासन पके हुए बीज को खरीदती है,जिसे पानी मे डुबाकर चेक करने के बाद लेती है।जबकि बैगा लोग कच्चे चार को तोड़ देते हैं,जिससे यह बीज शासन के मानक में फेल हो जाती है।ऐसे में इन कच्चे बीजों को बिचौलिए 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम की दर में खरीद लेते हैं।बिचौलिए बैगा आदिवासियों के घर तक पहुंचकर चार बीज खरीदते हैं।साथ ही कोचिए तो आदिवासियों को कनकी देकर बदले में वनोपज ले लेते हैं मामूली कीमत पर मिलने वाली कनकी व गेंहु देकर 126 रुपए किलो में बिकने वाली चिरौंजी इन आदिवासियों से ले लेते है। एक किलो चार बीज के बदले आदिवासियों केा केवल तीन – चार किलो कनकी दी जाती है। यदि बैगा आदिवासी पके हुए चार बीज का संग्रहण करेंगे तो इन्हें चार बीज की अच्छी कीमत मिल सकती है।इसी प्रकार अन्य वनोपज को भी वस्तु विनिमय व कम कीमत देकर बैगा आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है।
“चार बीज की खरीदी शासन द्वारा समर्थन मूल्य पर की जा रही है।प्रति किलोग्राम 126 रुपये समर्थन मूल्य है।मानक के अनुसार चार खरीदी की जाती है।”
अंकित तिवारी, रेंजर, वन विभाग पंडरिया (पश्चिम)रेंज।