आसपास के क्षेत्र और होटल व्यवसाय में बटेर की बढ़ती मांग को अवसर समझते हुए ग्राम खम्हरिया के गौठान में बटेर हैचरी यूनिट की शुरूवात की गई है। ग्राम्या उज्जवल महिला स्व सहायता समूह इस बटेर यूनिट का संचालन कर रही है। यहां बटेर की देसी वैरायटी केरी ब्राउन का उत्पादन किया जा रहा है। जिसमें स्वसहायता समूह की बहनों के सक्रिय भागीदारी के चलते गौठानों में होने वाले नवाचार आज वृहद स्तर पर फल-फूल रहे है।

पिंजरा विधि से 10 फीसदी अंडे के उत्पादन में होती है वृद्धि – पिंजरे में 3ः1 में मादा व नर बटेर को रखा जाता है। जिससे एक सीमित दायरे में नर और मादा के होने से प्रजनन दर बेहतर रहता है। पिंजरे में अंडे के क्षतिग्रस्त होने की संभावना न के बराबर रहती है, जिससे अंडे के उत्पादन में 10 फीसदी तक की वृद्धि प्राप्त होताी है। बटेर के चारे पानी व अंडे के संग्रहण लिए अटैचमेंट लगाए गए हैं। बटेर के 2 सप्ताह हो जाने के बाद उन्हें व्यवसायिक अंडों के लिए पिंजरे में रखा जाता है।
बटेर पालन से मिलेगा तीन गुना ज्यादा लाभ -स्व सहायता समूह को प्रशिक्षण देने वाले सहायक पशु चिकित्सक क्षेत्राधिकारी मोहित कामले ने बताया कि बटेर पालन में कम जोखिम उठाकर बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है। बटेर के अंडो का साईज छोटा होने के कारण हम इन्क्यूबेटर मशीन में ज्यादा अंडे डाल सकते हैं। एक ट्रे में 95 अंडे आते हैं और इन्क्यूबेटर मशीन में मुर्गी के अंडों से तीन गुना ज्यादा बटेर के अंडों को तुलनात्मक रूप से रखा जा सकता है। यदि हम मुर्गियों के साथ इसका तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो बटेर के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है और यह मात्र 35 दिन में मार्केट के लिए तैयार हो जाता है अर्थात एक ही सेटअप में यदि हम क्रमागत रूप से मुर्गी पालन और बटेर पालन करें तो बटेर से हमें तीन गुना ज्यादा लाभ भी मिलेगा।