राजकुमार सिंह ठाकुर
पंडरिया । ब्लाक के वनांचल में घाटियां इन दिनों हरियाली की चादर में ढंकी हुई है।अच्छे मानसून की वजह से इस वर्ष कोदो का उत्पादन अच्छा होता है।ब्लाक के पहाड़ियों की ढलानों में इनकी खेती बैगा और गोंड समुदाय द्वारा किया जाता है। कोदो की जैविक खेती बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।कोदो का दाना कुटकी के अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार के होते हैं।यह मानसून के आने पर जुलाई महीने में लगाई जाती है, जो करीब तीन महिने में तैयार हो जाती है।इसमें पानी की जरूरत अधिक नहीं होती,जिसके चलते इसे ढलानों पर लगाया जाता है।वनांचल के पंडरीपानी, बिरहुलडीह, भाकुर, नेऊर, कांदावानी,तेलियापानी,बांगर,सेजाडीह,मंगली,चतरी,झूमर,बोहिल,फिफलीपानी,अधचरा,बाहपानी,रुख़मीदादर,चांटा ,धुरसी, ठेंगाटोला,एरुंगटोला,अमनिया,कुंडापानी,सहित दर्जन से अधिक बैगा आदिवासी गांवो में इसका उत्पादन किया जाता है।कोदो भारत का एक प्राचीन अन्न है,जो एक शुगर फ्री अनाज है।इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन,1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाई जाती है।मधुमेह से पीड़ित लोग चांवल के बदले कोदो का उपयोग करते हैं।अधिकतर शुगर पेशेंट कोदो का उपायीग भोजन के लिए करते हैं।मंझगांव के मंगल सिंह यादव ने बताया कि पहले कोदो का उपयोग भोजन के लिए करते थे,लेकिन अब चांवल का उपयोग करते हैं।कोदो को अब बाजार में बेंच दिया जाता है।ब्लाक में कैरीब ढाई हजार हैक्टेयर में कोदो की खेती की जा रही है। *औषधीय गुण*- कोदो में औषधीय गुण पाया जाता है।वैद्यराज गिरिजा कुमार शुक्ला ने बताया कि कोदो मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो व मूत्राशय के लिए लाभकारी है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो -कुटकी हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी लाभकारी है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है।