अंडा। दुर्गग्रामीण अंचल में क्षेत्र अंडा,चिंगरी, अछोटी,भरदा,कुथरेल,चंदखुरी,जंजगिरी,विनायकपुर,निकुम,आलबरस,अंजोरा,रसमडा,गनियारी,बोरई, भोथली,अंजोरा,थनौद,कोलिहापुरी सहित पुरे क्षेत्रों में हलषष्ठी मनाया गया। अंडा के पुजारी आचार्य महेंद्र पांडेय ने बताया कि यह पर्व श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

चूंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र ‘हल’ और ‘मूसल’ है। अस्तु इस दिन को हलषष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है और श्री बलराम को ‘हलधर’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित है। इस दिन व्रत करने का भी विधान है। व्रत करने से जो संतानहीन है, उन्हें श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। हलषष्ठी व्रत के दिन श्री बलराम के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश, कार्तिकेय जी, नंदी और सिंह आदि की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।

आइए जानते हैं हलषष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं। इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। अब कोई आभूषण और हल्की से रंगा हुआ कपड़ा चढ़ाएं। उसके बाद भैंस के दूध से बनें मक्खन से हवन करें। फिर कथा सुनें। फिर सभी ग्रामीणों को प्रसाद वितरण किया गया।