राकेश कुमार
कुम्हारी। ए.नागराज द्वारा प्रतिपादित मध्यस्थ दर्शन मानव केंद्रित चिंतन आधारित जीवन विद्या (चेतना विकास मूल्य शिक्षा) पर पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन सेजस कुम्हारी में 6 जून से 10 जून तक आयोजित किया गया। इस कार्यशाला में सेजस कुम्हारी के व्याख्याता केशव साहू द्वारा चेतना विकास मूल्य शिक्षा पर आधारित हैप्पीनेस कार्यशाला का प्रबोधन कार्य किया गया। उन्होंने बताया कि अब तक की परंपरा में हमारे पूर्वजों ने अध्यात्मवाद और भौतिकवाद की दो धाराओं के बीच मानव सुखी कैसे रह सके उसके लिए अनेकों प्रयास किए इस क्रम में आज भक्ति विरक्ति और ईश्वर वाद में मानव को बहुत कुछ राहत दिया इसी प्रकार भौतिकवाद का यह योगदान रहा कि मानव सुविधा संग्रह से परिपूर्ण हो गया इन तमाम उपलब्धियों के बाद भी मानव का सुख पूर्वक जी पाना प्रश्न बना हुआ है इसका प्रमाण है कि, आज धरती बीमार हो गई है प्रकृति असंतुलित हो गयी है, यह चारों तरफ दिखाई दे रही है पर्यावरण प्रदूषित हो गया है. मानव मानव के बीच देश देशों के बीच विरोध और युद्ध पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रहा है ऐसी स्थिति में एक विकल्प के रूप में मध्यस्थ दर्शन सहस्तित्ववाद शिक्षा रूप में समाधान प्रस्तुत कर सकता है. इसके लिए शिक्षा विधि से जो चीज जैसी है उसे समझने का काम ठीक से करने की आवश्यकता है क्योंकि अभी वर्तमान शिक्षा ज्यादातर हुनर को सिखा रही है वह भी आधी अधूरी समझ बिल्कुल नहीं के बराबर सिखाई जा रही है इसका प्रमाण स्वयं अनेकों शिक्षाविदों ने प्रस्तुत किया है।
एन सी एफ़-2005 के अध्यक्ष प्रोफेसर यशपाल ने अपने संपादकीय में लिखा है कि आज हम सब सुविधाओं का अंबार लगा कर स्कूल को बच्चों के घर तक पहुंचा दिए हैं लेकिन बच्चों को उनकी जिंदगी से दूर कर दिए हैं, इसका प्रमाण आज चारों तरफ दिखाई देता है । हम देख पाते हैं जितने भी गड़बड़ियां और अव्यवस्था के कार्य है उसमें अनपढ़ों से ज्यादा शिक्षित लोगों का योगदान दिखाई देता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए शिक्षा समझ पूर्वक जीने के लिए है की अपराध को बढ़ाने के लिए यह आज सबके समक्ष ज्वलंत प्रश्न है इन्हीं प्रश्नों के समाधान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार स्कूल शिक्षा विभाग ने मध्यस्थ दर्शन आधारित चेतना विकास मूल्य शिक्षा को 2010 से स्कूली शिक्षा में बच्चों और शिक्षकों के लिए लागू किया है ताकि बच्चों का समझ पूर्वक शिक्षण समझे हुए शिक्षकों के द्वारा हो सके।
इसी शिक्षण प्रक्रिया को शिक्षकों और बच्चों तक संक्षेप में परिचय स्वरूप बताने के लिए पांच से सात दिनों का एक परिचय शिविर जीवन विद्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है सेजस कुम्हारी में बड़े बच्चों के लिए 5 दिन की कार्यशाला आयोजित कर यह बताया गया कि मानव के दो ही प्रश्न है पहला क्यों जीना तथा दूसरा कैसे जीना ? यदि स्कूली शिक्षा में यह स्पष्ट हो जाए कि हमें समाधान पूर्वक जीना है और विज्ञान विवेक पूर्वक अच्छा जीने का रास्ता प्रकृति द्वारा सहज रुप से प्राप्त कर सकते हैं इससे प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में परिवार में समाज में और प्रकृति में तालमेल पूर्वक जीने की योग्यता हासिल कर सकते है ।
जब व्यक्ति को यह समझ आता है कि मेरा जीना उपरोक्त चारों स्थानों में पूर्णता विधि से सह अस्तित्व पूर्वक है तो वह जीने की इस विधि को संबंध पूर्वक मूल्य विधि से समझता है और जीने के लिए कार्य व्यवहार कर पाता है जिससे वह अपनी मूल चाहत, सुख और समृद्धि को प्राप्त कर सकता है और हर क्षण हर पल आनंद पूर्वक जी सकता है।
इन्हीं सब बातों की चर्चा परिवार में संबंधों की, संबंधों में मूल्यों की एवं मूल्यों में जी कर निर्वहन करने की योग्यता को शिक्षा विधि से प्राप्त किया जा सकता है ऐसा एक प्रस्ताव इन 5 दिनों में कहने का प्रयास किया गया जिसे उपस्थित छात्र और शिक्षक सहजता पूर्वक ग्रहण कर पाए और सभी ने एक स्वर से स्वीकार भी किया की शिक्षा का यह विकल्प ना केवल स्कूली बच्चों के लिए बल्कि सभी उम्र के मानव जाति के लिए अति आवश्यक है क्योंकि बिना समझे केवल शिक्षा प्राप्त करके हम ठीक से नहीं जी पाएंगे क्योंकि समझना ही शिक्षा है और जीना ही संस्कार है, इसलिए पारंपरिक आधुनिक शिक्षा के विकल्प के रूप में चेतना विकास मूल्य शिक्षा अर्थात शिक्षा संस्कार एक विकल्प के रूप में स्कूल कालेजों में नियमित अध्ययन अध्यापन का विषय वस्तु बनाने की आवश्यकता है।
इस कार्यशाला को सफल बनाने में सेजस कुम्हारी की प्राचार्य लता रघु कुमार व्याख्याता मोतीलाल साहू, सेवानिवृत्त (राष्ट्रपति पुरस्कृत) शिक्षक परसराम साहू, सेवानिवृत्त व्याख्याता एन. लक्ष्मी का विशेष सहयोग रहा।