आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सजगता से हिरेंद्र को मिला नया जीवन


दुर्ग। महिला एवं बाल विकास विभाग महिलाओं और बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए लगातार कार्य कर रहा है जहां आंगनवाड़ी केंद्र की कार्यकर्ता दीदी बच्चो की हरसंभव देखभाल करते हुए कुपोषण के श्राप से मुक्ति दिलाने  हेतु प्रयासरत  है । ऐसी ही कुछ कहानी महिला एवं बाल विकास विभाग जिला दुर्ग के जामगांव एम परियोजना के आंगनवाड़ी केंद्र अचानकपुर 2  के 3 वर्ष का बच्चा हिरेंद्र यादव की है माता लक्ष्मी यादव और पिता दिलीप यादव के घर 10.7.21 को उतई स्वास्थ्य केंद्र में हिरेंद्र का जन्म हुआ| जन्म के समय वजन 3 किलो एवं लंबाई 46•01 सेंटीमीटर था एक दम स्वस्थ्य और तंदुरुस्त था | इसी बीच 7 माह में हिरेंद्र का अन्नप्राशन आंगनवाड़ी में किया गया एवं ऊपरी आहार के बारे में बताया गया|   7 माह बाद बच्चे की स्थिति खराब होनी शुरू हुई क्योंकि मां बच्चे को उसकी दादी के पास छोड़कर काम में जाती थी | हिरेन्द्र की मां जब आंगनबाड़ी केंद्र में वजन कराने आई तो कार्यकर्ता दीदी बूंदा साहू ने पूछा कि आज ऊपरी आहार में क्या खिलाए ? मां ने बताया कि मेरा दूध पर्याप्त है इसका पेट भर जाता है और बिस्किट खिलाती  हूं कार्यकर्ता दीदी बोली बच्चें को वजन मशीन में बैठाओ वजन लेने के लिए हीरेंद्र की मां बोली कि यह बैठ नहीं पाता पलट भी नहीं पाता कार्यकर्ता दीदी तुरंत ताली बजाकर सीटी बजा कर कान के पास चुटकी बजाकर हीरेंद्र का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की परंतु बच्चा थोड़ा भी नहीं हिला बस आंख ऊपर नीचे किया उसके हाथ पैर और पूरे शरीर में  सूजन हो गया था |हथेली पांव में काले निशान हो गये थे | दूसरी ही दिन कार्यकर्ता दीदी, हीरेंद्र और उसकी मां को पाटन एनआरसी लेकर गई वहां से डॉक्टर पुनर्वास केंद्र दुर्ग ले जाने की सलाह दिए हिरेन्द्र की मां पिताजी और दादी दुर्ग ले जाने को तैयार नहीं थे बार-बार बोलने पर 6 दिन बाद तैयार हुए कार्यकर्ता दीदी अपने साथ फिर पुनर्वास केंद्र लेकर गई वहां जाने पर पता चला कि बच्चों को एडिमा है और हीमोग्लोबिन  4 ग्राम है ।अजय कुमार साहू जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी दुर्ग ने बताया कि बच्चे के 1000 दिवस बहुत महत्वपूर्ण होते है और सबसे ज्यादा देखभाल की आवश्यकता 6 माह से 2 वर्ष के बीच करना जरूरी है क्योंकि इसी समय मां का दूध बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता है तो ऊपरी आहार और घर में बने भोजन का अधिक अधिक दिया जाना होता है परंतु जानकारी के अभाव या कार्य की अधिकता में माता पिता और परिवार का ध्यान नहीं जा पाता है । जबकि इस समय बच्चे के शरीर में वृद्धि के अनुसार भोजन दिया जाना अति आवश्यक है ऐसा ही कुछ हिरेंद्र के साथ भी हुआ है । पर्यवेक्षक श्रीमती संध्या सिंह की सलाह से   हिरेंद्र को पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया । दो बोतल खून चढ़ाया  गया । 15 दिन बाद हीरेंद्र घर वापस आया तो सभी प्रकार की चीजों को  खाने लग गया था धीरे-धीरे घुटने के बल चलना , बैठना शुरू किया डेढ़ वर्ष में चलने लगा पर अभी भी बोल नहीं पाता है फिर से कार्यकर्ता दीदी दो बार पुनर्वास केंद्र लेकर गई वहां हीरेंद्र को थेरेपी के बाद लिए बोला गया ।कार्यकर्ता की सलाह और बार बार आग्रह करने से माता पिता द्वारा हिरेंद्र का  थेरेपी करवाया गया ।  अब वह मां पापा बोल पाता है ।  हिरेन्द्र बहुत चंचल है एक दिन उसकी मां खाना बना रही थी तो गरम माड़ में गिर गया जिससे हीरेंद्र को बायां हाथ बहुत ज्यादा जल गया कार्यकर्ता दीदी तुरंत पाटन स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई उसे  ठीक होने में तीन माह लग गये अभी हिरेंद्र 3 वर्ष 9 माह का है अभी वह स्वयं चलकर आंगनबाड़ी आता है उसे देखकर बहुत खुशी होती है और पूरा का पूरा परिवार भी बहुत खुश है|