अनुश्रुति है कि गंगाजल रामेश्वरं में अर्पित करते हैं-इस संबंध में जानकारी देते हुए पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि भारत में पाये जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं। एक तो स्थायी रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी। भारतीय साहित्य में इनके बारे में दिलचस्प वर्णन है। इजीप्शियन वल्चर संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है। अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में प्राप्त हुई थी जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया। इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा। माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वर तक पहुँचते हैं। इनके बारे में अनुश्रुति है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरं में भगवान शिव को चढ़ाते हैं।
पाटन के अचानकपुर में भी देखे गए- पक्षी विशेषज्ञ राजु वर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष पाटन के अचानकपुर में भी इजीप्शियन वल्चर देखा गया था। उन्होंने बताया कि पाटन के सांकरा और बेलौदी में प्रवासी पक्षियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां लगभग 2 हजार माइग्रेटरी बर्ड स्पॉट किए गए हैं। 2 फरवरी को यहां वर्ल्ड वेटलैंड डे मनाया गया।
कैसे दिखते हैं– इनके गर्दन में सफेद बाल होते हैं। आकार थोड़ा छोटा होता है। ब्रीडिंग के वक्त इनकी गर्दन थोड़ी सी नारंगी हो जाती है।