उतई।गुरू सतनाम रावटी के चौथे पड़ाव पर देउरझाल पहुंचे गुरूद्वारा भंडारपुरी धाम से धर्म गुरू नसी साहेब ने गुरूवाणी में बताया की मानव समाज मोक्ष, गृह शांति, आध्यात्मिक उन्नति आदि के लिए गंगा स्नान करने त्रिवेणी संगम जाते फिर भी उन्हें मोक्ष, गृह शांति, आध्यात्मिक उन्नति आदि नहीं प्राप्त होता क्योंकि परमब्रह्म सतपुरुष पिता ने जिस गंगा के त्रिवेणी संगम को मोक्षदायिनी बताया है वह ज्ञान भक्ति और वैराग्य का त्रिवेणी संगम है जिसपर स्नान करने से ही मोक्ष, गृह शांति, आध्यात्मिक उन्नति आदि प्राप्त होता है। यही कारण है कि परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास जी ने भी स्नान करने योग्य त्रिवेणी संगम की गंगा को प्रत्येक व्यक्ति के पास ही बताया है उसके लिए कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं होती पर लोग सिर्फ जल स्नान का लाभ लेकर ही पांपो से मुक्ति का कामना करते है जो निर्थक है।संसार के संचालक परमब्रह्म सतपुरुष पिता-प्राप्ति के हेतु ज्ञान मार्ग का अव्लम्ब लेने वाले ज्ञानी का लक्ष्य, सतपुरुष पिता के निर्गुण निराकार रूप में लीन होना है । वह साकार रूप (अवतारों) में विश्वास नहीं करता है क्योंकि प्रत्येक जीव में वास कर रहे सतपुरुष पिता के अंश की तरह अवतार भी भवसागर का एक हिस्सा मात्र होता है संसार का संचालक परमब्रह्म परमपिता सतपुरुष नहीं। वैराग्य मार्ग का अव्लम्ब करने वाले वे हैं जो सतपुरुष पिता का ध्यान करते हुए संसार से न पूर्ण विरक्त है और संसार में न ही पूर्ण आसक्त है। वहीं भक्ति मार्ग का अव्लम्ब करने वालों का सतपुरुष पिता स्वयं रक्षा करते हैं अतः साधक निडर हो कर चलता है । ज्ञानी बंदर के उस बच्चे के समान है जो स्वयं अपनी माँ को पकड़ता है। क्योंकि बच्चा कमजोर होता है, जब उसकी माँ एक शाखा से दूसरी शाखा पर छलांग लगाती है तो, कई बार वह गिरकर घायल हो जाता है। जबकि भक्त बिल्ली के उस बच्चे के समान है जिसकी माँ स्वयं उसे अपने मुख में लेकर चलती है । अतः उसके गिरकर घायल होने की संभावना कम होती है। ज्ञानार्जन तथा त्याग अंतःकरण की शुद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है। ज्ञानी अपने बल पर माया के राजस व तामस गुणों को तो पार कर लेता है परंतु सत्वगुण फिर भी रहता है । आत्मज्ञान सत्वगुण से उत्पन्न होता है। इस अवस्था को प्राप्त जीव को आत्मज्ञानी कहते हैं। अपने परम लक्ष्य, परिपूर्ण सतपुरुष पिता का ज्ञान एवं मोक्ष की प्राप्ति तथा भवसागर से पार होने हेतु ज्ञानी,वैरागी को सतपुरुष पिता की भक्ति करनी अनिवार्य होती है। सतपुरुष पिता की भक्ति किये बिना कोई भी अपने मन (अंतःकरण) को पूर्णतया शुद्ध नहीं कर सकता है।अतः यह स्पष्ट है कि बिना सतपुरुष पिता भक्ति के मोक्ष की प्राप्ति असंभव है,मोक्ष प्राप्ति के सभी साधनों में भक्ति सर्वोच्च एवं अपरिहार्य है।
कार्यक्रम के संचालक सतनामी समाज के अध्यक्ष भारत लाल बंजारे ने बताया की गुरू सतनाम रावटी का अगला पड़ाव दिनांक 26 मई को ग्राम गनियारी से गुरूवंदना व सेतखाम पूजा के साथ होगी और ग्राम पचपेड़ी में जनसंपर्क पश्चात धर्मसभा ग्राम गनियारी में होगी जिसमें राजमहंत, जिलामहंत सहित मानव समाज के सभी सतनाम प्रेमी गुरूवाणी का लाभ लेंगे।

- May 25, 2023