घाटियों में तैयार हो रहे कोदो-कुटकी की फसल…..औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है कुटकी

पंडरिया। ब्लाक के वनांचल की वादियों में इन दिनों कोदो-कुटकी की हरियाली बिखरी हुई है।फसल लगभग तैयार होने को हैं। पहाड़ियों की ढलानों में इसकी खेती बैगा और गोंड समुदाय द्वारा किया जाता है। कोदो की खेती जैविक खेती पद्यति से होती है।कोदो के दाने कुटकी के अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार के होते हैं।वहीं कुटकी कोदो से छोटे आकार के होते हैं।दोनों ही महत्वपूर्ण अनाज हैं।

शुगर के मरीज चांवल की जगह कोटो -कुटकी का उपयोग भोजन के लिए करते हैं।कुटकी का खीर बहुत स्वादिष्ट होता है।यह मानसून के आने पर जुलाई महीने में लगाई जाती है, जो करीब तीन -चार महिने में तैयार हो जाती है।इसमें पानी की जरूरत अधिक नहीं होती,जिसके चलते इसे ढलानों पर लगाया जाता है।

ब्लाक के  पंडरीपानी,बिरहुलडीह,भाकुर,नेऊर,कांदावानी, बाहपानी,भलीन दादर,तेलियापानी,बांगर,सेजाडीह,मंगली, चतरी,झूमर,बोहिल,फिफलीपानी,अधचरा,बाहपानी,रुख़मीदादर,चांटा ,धुरसी, ठेंगाटोला,एरुंगटोला,अमनिया,कुंडापानी, पकरीपानी, तीन गड्डा,सहित अनेक अधिक बैगा आदिवासी गांवो में इसका उत्पादन किया जाता है।कोदो भारत का एक प्राचीन अन्न है,जो एक शुगर फ्री अनाज है।इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन,1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाई जाती है।

मधुमेह से पीड़ित लोग चांवल के बदले कोदो का उपयोग करते हैं।कोदो – कुटकी खेती वनांचल क्षेत्रों में बढ़ती जा रही है।ब्लाक में करीब तीन हजार हैक्टेयर से अधिक रकबा में कोदो-कुटकी की खेती की जा रही है।
औषधीय गुणों से भरा है कुटकी– कोदो -कुटकी औषधीय अनाज है।जसमें औषधीय गुण पाया जाता है।

वैद्यराज गिरिजा कुमार शुक्ला ने बताया कि कोदो मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो व मूत्राशय के लिए लाभकारी है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो -कुटकी हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी लाभकारी है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है।