‘पाठकों की पाती’ में आज पढ़िए लेखक विजय मानिकपुरी की कलम से…”मैं बेहया,बेशरम हूँ साहब”

कोई गुस्सा से दूर फेंके
कोई स्नेह से हटा दें
फिर भी अपनी छाप
छोड़ जाता हूँ
क्योंकि मैं
बेहया, ‘बेशरम’ हूँ जनाब

मुझमें भी गजब का शौक है
मन्दिर-दरगाह-जनाजे में न चढूं
फिर भी फूल खिल जाता हूँ
क्योंकि मैं
बेहया, ‘बेशरम’ हूँ साहब

कभी गरीब का चूल्हा बन जाता हूँ
कभी झोपड़ी का आधारशिला,
कभी तितलियां, चिड़ियों और
चूहों का बसेरा भी बनता हूँ
क्योंकि मैं
बेहया ‘बेशरम’ जो हूँ साहब

प्रकृति ने भी कितना,
मुझमें और उसमें फर्क किया है
सोचकर कांप जाता हूँ,
सहम जाता हूँ, रूक जाता हूँ

कांटो और दलदली में
उपजा फूल का भी क़द्र है जनाब
मुझे, सभ्य पैरों तले रौंदे जाने की शौक है साहब
क्योंकि मैं बेहया ‘बेशरम’ का
जो एक फूल हूँ जनाब..!

कड़कती ठंड,
बरसते बादल,
झुलसते अंगार को
‘दोस्त’ बना बैठा हूँ
क्योंकि मैं
बेहया, ‘बेशरम’
जो बन बैठा हूँ..!

मुझे सम्मान की
कोई दरकार नहीं
अपमान का
घूंट पी चुका हूँ
‘बेशरम’ का जला राख हूँ साहब
राख को क्या जला पाओगे जनाब

महकते गुलाब, मोंगरा और रातरानी के बीच मेरी क्या औकात साहब,
लेकिन झुग्गियों का पूरा विश्वास हूँ जनाब
क्योंकि मैं बेहया, ‘बेशरम’ हूँ साहब..!

किसी ने सच कहा है साहब
पैसे के नाम पर,
ईमान बिक कर
इनाम मिल जाता है,
पंचतत्व से बना पुतला भी मौज से इठलाता है,
गरज-बरस से
फफूंद भी उग जाते हैं
मैं तो बेहया ‘बेशरम’ हूँ साहब
दुत्कार में भी उग जाता हूँ..!

किस बात की घमंड है साहब
मुक्ति का द्वार एक समान है जनाब
तू अकड़ कर मर जाएगा
मैं सूखकर टूट जाऊंगा
क्योंकि मैं भी प्रकृति प्रदत्त
बेहया ‘बेशरम’ जो हूँ साहब

शिकायत की
इस बस्ती में ‘लल्लू’
तू बेहया ‘बेशरम’
बन बैठा है
तेरी वजूद,
खुद का ‘विजय’ यात्रा है,
क्योंकि
बेहया ‘बेशरम’ से भी
फूल खिल जाता है,
बेहया ‘बेशरम’ से भी
फूल खिल जाता है..!

लेखक परिचय

विजय मानिकपुरी

(विजय मानिकपुरी)
विजय मानिकपुरी, बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं, वे मूलतः ग्रामीण परिवेश से जुड़ा हुए हैं। पाटन, जिला दुर्ग के शासकीय स्कूल से दसवीं पास किया, तो कुरूद विधानसभा के ग्राम जी जामगांव से हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण कर, जीवकोपार्जन के लिए रायपुर आ गए और इस तरह रायपुर में रहकर, देशबंधु, रौद्रमुखी, नवभारत जैसे समाचार पत्रों में काम किया और काम करते हुए ही स्नातकोत्तर डिग्री भी प्राप्त की।
श्री मानिकपुरी, सामाजिक, अंधविश्वास, आडम्बर, उपेक्षा, तिरस्कार, दुत्कार, अपमान, छुआछूत, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब जैसे विषयों पर समय-समय पर रचना, लेख, कविता लिखते आ रहे हैं।
फिलहाल जनसंपर्क विभाग में सहायक जनसंपर्क अधिकारी के रुप कार्यरत है। शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं, उपलब्धियों के बारे आलेख लिखते हैं ताकि आम लोगों को इसका लाभ मिल सके। श्री मानिकपुरी द्वारा लिखे ‘वीसीआर का वह दौर’ लेख को सोशल मीडिया ने काफी सराहा और करीब 10 हजार से अधिक लोगों ने लाइक भी किया।