अंडा। गरीब जरूरतमंद लोगों को सौ दिनों का रोजगार मुहैया कराए जाने के उद्देश्य में 7 सितंबर 2005 को तात्कालिक केन्द्र को यूपीए सरकार द्वारा लागू की गई जनकल्याणकारी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अब छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के राज में दम तोड़ते नजर आ रही है। आलम ये है कि इस बार के बजट में राज्य सरकार ने न तो इस योजना के लिए कोई प्रावधान किया है और न ही मनरेगा मजदूरों के लिए कोई नया बजट में शामिल नहीं किया है जिससे प्रदेश सहित जिले के कृषक मजदूरों के साथ मनरेगा के मजदूरों कर्मचारियों में भारी निराशा देखने को मिल रहा है। उक्त बातें उपाध्यक्ष श्रम कल्याण मंडल केशव बंटी हरमुख ने जारी बयान में कहीं। पूर्व में हमारी कांग्रेस की सरकार लगातार 5 सालों तक मनरेगा के सभी मजदूरों को भरपीर काम दिया और तो और ज़ब देश कोरोना काल में था तब भी प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने लगातार श्रमिक मजदूरों के लिए विभिन्न योजना बनाकर उन्हें लाभ दिलाया आज भाजपा की सरकार श्रमिकों के लिए कोई योजना भी नहीं बनाई पाई है
मनरेगा के मजदूरों ने बताया की गर्मी के दिनों में हमें काम दिया जाता था लेकिन इस बार मनरेगा में हमें काम नहीं दिया जा रहा है इस संबंध में उन्होने कई बार शासन-प्रशासन से निवेदन भी किया है श्री हरमुख ने कहा कि एक तरफ तो भाजपा की सरकार गांव, गरीब और मजदूरों की बात करती है और दूसरी तरफ छोटे-छोटे कर्मचारियों व मजदूरों का हक मार रही है जो निश्चित रूप से मनरेगा के मजदूरों व कर्मचारियों और अल्प मानदेय में गुजारा करने वाले उनके आश्रितों पर अन्याय है। वोतो कांग्रेस की सरकार की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने मजदूरों के हित को ध्यान में रखते हुवे मनरेगा को केवल योजना नही बल्की कानून बनाया अन्यथा भाजपा की सरकार इसे कब से बंद कर देती। श्री बंटी हरमुख ने शासन से जल्द से जल्द मनरेगा कार्य प्रारंभ करवाने की बात कही है। अगर सरकार मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार नही दे रही तो मनरेगा के प्रावधानों के तहत मुआवजा प्रदान करे
