रसमड़ा स्कूल के एन. एस. एस. के बच्चों ने पुलगांव वृद्धा आश्रम का किया भ्रमण

अंडा। फोटो। ‘वृद्धाश्रम ‘ का नाम लेते ही अपनों के प्यार व दुलार के लिए तरसते बुजुर्गों क़ी याद आ जाती है । जिस बुढ़ापे में संतान को बुजुर्ग माता -पिता का ख्याल रखना चाहिए, वे अब बेगाने हो गये है, यह दृश्य पुलगांव वृद्धा आश्रम का है, जहाँ उनके ही संतान अपने बुजुर्ग माता पिता से मुँह मोड़ चुके है । शा. उ. मा. वि., रसमड़ा के एन. एस. एस. के 48 सदस्यों का दल पुलगांव वृद्धा वृद्धा आश्रम का एक दिवसीय भ्रमण किया, ताकि उनके दैनिक दिनचर्या क़ी जानकारी प्राप्त किया जा सके । भ्रमण का दूसरा उदेश्य बुजुर्गो के प्रति सम्मान क़ी भावना, बुढ़ापे में उनका सहारा बनना आदि संस्कार विकसित करना था । वहाँ बच्चों ने अनुभव किया कि जिस उम्र में माता -पिता को अपने परिवार के बीच रहना चाहिए, वे वृद्धा आश्रम में रहने के लिए मजबूर है ।

स्कूली बच्चों को अपने बीच पाकर कुछ बुजुर्ग बच्चों की तरह रोने लगे , जिससे पता चलता है कि वे लोग दुख की अधिकतम सीमा को पार करके जीना सीख लिया है , आज पढ़ाई के साथ साथ संस्कार युक्त शिक्षा की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ी को ऐसे दृश्य देखना न पड़े ,भ्रमण दल का नेतृत्व व्याख्याता व एन. एस. एस. कार्यक्रम अधिकारी जयपाल सिंह गाँवरे ने किया , सहयोगी के रूप में श्रीमती एन. व्ही. एस. नलिनी (व्याख्याता ), श्रीमती भुनेश्वरी बंजारे, दुर्गेश शुक्ला (पी. टी. आई.), विष्णु नोर्के सर, श्रीमती रुखमाणी डाहरे उपस्थित रही । स्वयंसेवकों में कु. प्रेरणा, पायल शर्मा, अभिषेक, गौरव, लव, खोमेश, पार्वती, चंदन, खुशबु, ईश्वरी, कल्पना, ज्योति, खिलेश्वरी, लक्ष्मी, शीतल, हर्षिता, डिम्पल सिन्हा, भारती साहू, पूनम, रितिका, मुस्कान, दुर्गा, सुरुचि, प्रतिमा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।