नए तेवर व कलेवर में: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को संजीवनी, 10 साल बाद उत्तर और पश्चिम में भी दिखाई धमक

सीजी मितान

लगातार तीसरे चुनाव में कांग्रेस की सीटों का आंकड़ा तिहरे अंक में प्रवेश नहीं कर पाया। पार्टी एनडीए को नहीं रोक पाई। बावजूद इसके करो या मरो की इस अहम जंग के नतीजे ने हार-दर-हार से हताश कांग्रेस को नया जीवन दिया है।

भाजपा को अपने दम पर बहुमत हासिल करने से रोक कर कांग्रेस ने गैरभाजपा दलों में खुद की नेतृत्व क्षमता और भविष्य में बदलाव के प्रति एक मजबूत विश्वास भी पैदा किया है। दरअसल, इस चुनाव में कांग्रेस के सभी प्रयोग सफल रहे। यूपीए की जगह इंडिया गठबंधन बनाने का भी प्रयोग सफल रहा। इस चुनाव में दक्षिण के मोर्चे से बाहर आकर पश्चिम भारत के साथ हिंदी पट्टी में भी अपने लिए नई संभावनाओं को जन्म दिया है। पार्टी महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी, यूपी में सपा के सहारे भाजपा को बड़ा झटका देने में सफल रही। इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा जैसे भाजपा के मजबूत गढ़ में दमदार उपस्थिति दर्ज करा कर और गुजरात में खाता खोल कर पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने में भी कामयाब रही है।

चुनाव परिणाम से राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के साथ राहुल की धमक बढ़नी तय है। पार्टी को दस साल बाद नेता प्रतिपक्ष का पद मिलेगा। संसद में पार्टी को पहले की तुलना में लगभग दोगुनी ताकत के साथ एक ऐसे गठबंधन का नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा, जिसके पास दो सौ से अधिक सांसदों की संख्या होगी। संसद की कई अहम संसदीय समितियों की कमान पार्टी और उसके सहयोगियों को मिलेगी।

इस चुनाव में कांग्रेस को सामाजिक न्याय के आवरण में ला कर संविधान और आरक्षण जैसे मुद्दे पर भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने की रणनीति राहुल की थी। इस रणनीति को मिली सफलता के बाद राहुल की छवि और निखरेगी। वैसे भी बीते चुनाव में हार के बाद राहुल ने अपनी दो देशव्यापी यात्राओं के जरिये देश का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफलता हासिल की थी।

आम चुनाव में भाजपा के मतों में महज एक फीसदी की कमी तो कांग्रेस के मतों में महज दो फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि, इंडिया गठबंधन के निर्माण ने कई राज्यों में विपक्षी मतों में होने वाले बिखराव में कमी ला कर बड़ा बदलाव लाने में सफलता हासिल की। एतिहासिक रूप से सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़नेे के बाजवूद कांग्रेस के सांसदों की संख्या 52 से बढ़कर 99 हो गई, जबकि महज एक फीसदी मत की गिरावट से ही भाजपा की 63 सीटें कम हो गई।

साभार अमर उजाला