स्कूल में होती है स्थानीय बोली में पढ़ाई
नितिन रोकड़े
बीजापुर—– जिला मुख्यालय के घोर नक्सल व जंगली पहाड़ी क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला गंगालूर क्षेत्र जहां इन दिनों जंगल की पाठशाला जोरों शोरों पर चल रही है । जगह- जगह पर दक्षिण बस्तर के अंदरूनी जंगलों में इन दिनों प्राइमरी से मिडिल स्कूल तक की पाठ शालाओं का संचालन जनता ना सरकार के द्वारा किया जा रहा है । जिसमें काफी संख्या में अंदरूनी क्षेत्र के छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं । परंतु शिक्षा विभाग को चैलेंज करने वाली बात यह है कि इन बच्चों को पढ़ाई के बाद ना कोई ना कोई टीसी , न ही कोई मार्कशीट मिलने वाला है । जिसकी वजह से इनका भविष्य अंधकार में एक तरफ जिला प्रशासन व राज्य सरकार शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए पूर्ण तहा मेहनत की ओर है । वही इन सारी बातों को नकारते हुए कई जंगल की पाठशाला बताती है । कि उनके कई स्कूलों में इन दिनों नन्हे-मुन्ने अपना भविष्य गढ़ रहे हैं । परंतु वह भविष्य अंधकार में है इस संबंध में एरिया के कई हिस्सों में छानबीन करने पर कई स्कूलों के नाम आए इसमें प्रमुखता से जिसमें बच्चे सुबह 10:00 बजे से 4:00 बजे तक पढ़ाई करते हैं ।
पढ़ाई में पूरा जनता ना सरकार के हिसाब से होता है कुछ हिस्सा शिक्षा विभाग का भी है । परंतु प्रमुखता से नन्हे-मुन्ने गोंडी भाषा पुस्तकों का उपयोग अधिकतर करते हैं । जिसमें सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, हिंदी, गणित, भी शामिल है । इन दिनों इंग्लिश भी शामिल किया गया है । कक्षा पहली से लेकर कक्षा आठवीं तक की पढ़ाई चल तो रही है परंतु आधी अधूरी इस पढ़ाई से इन ग्रामीण आदिवासी बच्चों का भविष्य अंधकार में है । क्योंकि सरकार की योजनाओं का लाभ लेने के लिए इन्हें मार्कशीट की जरूरत पढ़ती है । समय-समय पर चाहे रोजगार कार्यालय में पंजीयन हो चाहे किसी भी तरह की नौकरी करनी हो इन सारी चीजों के लिए इन्हें प्रूफ देना पड़ेगा कि यह कौन सी पाठशाला में अपनी पढ़ाई किए हैं। परंतु कई बच्चों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होगा ।
— दक्षिण बस्तर के अंदरूनी जंगली एरिया में जंगल की पाठशाला शुरू हो गई है । और हजारों बच्चे इन पाठ शालाओं के हिस्से भी बन रहे हैं । कहीं आदिवासी बच्चे के माता- पिता मजबूरी में यह कर रहे हैं । तो कहीं अज्ञानता की वजह से भी यह उनके माता-पिता ओं से हो रहा है । परन्तु ये पढ़ाई उनके भविष्य को अंधकार में ले जाता है । शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती भी है । आज जहां वैज्ञानिक युग है यह कई स्कूली छात्र छात्राओं के द्वारा मॉडल बनाए जाते हैं। तो अंदरूनी क्षेत्र में जरा सोच कर देखिए किस तरह के मॉडल बनाते होंगे ।
*अपील पालकों से*
—बाइट—*कलेक्टर बीजापुर राजेंद्र कटारा– शासन द्वारा आश्रम, पोटाकेबिन, छात्रावास की बेहतर से बेहतर सुविधाएं हैं । इस तरह के स्कूल में जाकर अपना भविष्य खराब ना करें बगैर मार्कशीट के नौकरी और अन्य पहचान पत्र बना बड़ा मुश्किल है । किसी के बहकावे में ना आए अच्छी शिक्षा के लिए आगे बढ़े । बन्द शाला भी खुल रही हैं उस का भी लाभ ले आप की हर सभवः मदद की जाएगी शिक्षा के लिए ।