ईकाई के गठन अवसर पर जसम की राष्ट्रीय ईकाई के सदस्य और प्रखर आलोचक प्रोफेसर सियाराम शर्मा ने कहा कि जब देश भयावह संकट से नहीं गुजर रहा था तब साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठन जबरदस्त ढंग से सक्रिय थे, लेकिन अब जबकि देश में सांप्रदायिक और पूंजीवादी ताकतों का कब्जा बढ़ता जा रहा है तब लेखकों और सांस्कृतिक मोर्चें पर डटे हुए लोगों की बिरादरी ने एक तरह से खामोशी ओढ़ ली है. एक टूटन और पस्ती दिखाई देती है. कलमकार और संस्कृतिकर्मी इस दुखद अहसास से घिर गए हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता. शर्मा ने कहा कि यह कार्पोरेट और फासीवादी राजनीति का भयावह दौर अवश्य है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इन ताकतों को परास्त नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि हर रोज लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला जा रहा है. इस भयावह दौर में चेतना संपन्न लेखकों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों का एकजुट होना बेहद जरूरी है. श्री शर्मा ने बताया कि देश के बहुत से हिस्सों में जन संस्कृति मंच से जुड़े लोग अपना प्रतिवाद जाहिर करते रहे हैं. अब रायपुर ईकाई भी मुखर होकर काम करेगी।
जसम की दुर्ग-भिलाई ईकाई के सचिव अंजन कुमार ने संगठन के संविधान और उद्देश्य को विस्तार से बताया तो देश के चर्चित कथाकार कैलाश बनवासी ने कहा कि संगठन केवल समाज ही नहीं स्वयं के वैचारिक और रचनात्मक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है. फिलहाल हमारे सामने विवेकहीन लोगों की भीड़ खड़ी कर दी गई है, लेकिन हमें नागरिक बोध और विश्वबोध के साथ प्रतिरोध जारी रखना है. रायपुर इकाई के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपे जाने पर राष्ट्रीय ईकाई के सदस्यों और बैठक में मौजूद लेखक-संस्कृतिकर्मियों के प्रति आभार जताया. उन्होंने कहा कि जन संस्कृति मंच में विचारवान युवा लेखकों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों का सदैव स्वागत रहेगा. ईकाई के गठन के दौरान मई महीने के अंतिम सप्ताह में एक साहित्यिक आयोजन किए जाने को लेकर भी चर्चा की गई. जसम के सभी सदस्यों ने तय किया कि देश के प्रसिद्ध लेखक रामजी राय की नई पुस्तक मुक्तिबोध- स्वदेश की खोज पर एक दिवसीय चर्चा गोष्ठी आयोजित की जाएगी. जसम की रायपुर ईकाई के गठन के दौरान अंचल के लेखक, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे।