अर्जुनी । अर्जुनी से जिला मुख्यालय तक जाने वाली मुख्य सड़क मरम्मत के 15 दिन बाद ही उखड़ने लगी है। गाड़ियों के भार से सड़क में अभी से ही जगह-जगह निशान उभर आए हैं। इस पर दुपहिया गाड़ी लहराती हैं। इसके चलते हमेशा हादसे का डर बना रहता है।
भारी वाहनों के पहिए से सड़क धंसकर अपने स्थान से 5 इंच नीचे चली गई है। इस सड़क में रोजाना सैकड़ो टन माल भारी वाहनों के द्वारा आवश्यक स्थान में पहुंचाया जा रहा है। इसके चलते सड़क में बड़े-बड़े सर्पाकार निशान उभर आए हैं। कुछ स्थानों में सड़क इतनी ज्यादा धंस चुकी है कि गलती से भी इसमें आने से राहगीरों को अनियंत्रित होकर दुर्घटना का शिकार होना पड़ रहा है। खासकर रात में फैमिली लेकर चलने वाले राहगीरों के साथ दुर्घटना का खतरा बना हुआ है।


यह मार्ग बलौदाबाजार बाईपास से लेकर भाटापारा तक पूरी तरह खराब है। जगह-जगह भारी वाहनों के पहिए से निशान उभर आए हैं। इससे राहगीर अनियंत्रित होकर दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। इस सड़क का निर्माण लगभग 15 साल पूर्व जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए कराया गया था। यह सड़क लोगों के लिए सुविधा कम, मुसीबत ज्यादा साबित होने लगी है। राहगीर इस सड़क में चलने से कतरा रहे हैं। लोगों में इस सड़क के कारण भय का माहौल बना हुआ है। रोजाना इस सड़क में कोई ना कोई छोटे-बड़े हादसे होना आम बात है। अगर रेकॉर्ड निकल जाए तो इन 15 सालों में सड़क में सैकड़ो लोग दुर्घटना का शिकार होकर अपनी जान दे चुके हैं। लोगों के लिए मुसीबत बनी यह सड़क सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है।

सड़क किनारे बसे कई गांव के लोग हुए परेशान जोखिम से भरे जान
यह सड़क सरकारी कर्मचारी, अधिकारी एवं मरमत करने वाले ठेकेदारों के लिए कमाई का जरिया बना हुआ है। इस सड़क की लंबाई बलौदा बाजार से भाटापारा तक लगभग 28 से 30 किलोमीटर है। इसके बीच में दर्जनों गांव के लोग इस मार्ग का उपयोग जिला मुख्यालय एवं भाटापारा पहुंचने के लिए करते हैं। इसके अलावा इस मार्ग में जिला बलौदा बाजार व भाटापारा में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं एवं काम करने वाले सरकारी कर्मचारी भी इस मार्ग का उपयोग रोजाना करते हैं।
बता दें कि 10 से 15 दिन पहले इस सड़क में मरमत कार्य किया जा रहा था। सड़क में बने हुए भारी वाहनों के पहिए के निशानों को खोदकर डामर, बजरी डालकर बराबर किया जा रहा था। परंतु मरमत के कुछ दिनों बाद सड़क में फिर से भारी वाहनों के पहिए के निशान उभर आए हैं। इससे समस्या खत्म होने के बजाय और बढ़ गई है। सड़क मरमत के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपए का चूना शासन-प्रशासन को लगाया जा रहा है। इसके अलावा सड़क निर्माण के समय जिलेवासियों द्वारा सड़क की गुणवत्ता के ऊपर कई सवाल खड़े किए गए थे।