आत्मा की पवित्रता ही परमात्मा से साक्षात्कार करवाता है…आभाव या प्रभाव की मित्रता टिकाऊ नही–संत श्री निरंजन महराज जी

संजय साहू
अंडा। दुर्गग्रामीण विधान सभा क्षेत्र के ग्राम बोरई में श्रीमद्भागवत कथा चल रहे हैं, जिसमें निरंजन महाराज जी बता रहे हैं कि हमारे मन में प्रेम है,घट में प्रेम है,अपने अंदर की पवित्रता है तो हमारे घर में जीवन में वृन्दावन है ,जहां प्रभु हमेशा रहते हैं। मन वचन कर्म से भगवान का वरण कर लो,जैसे व्यवहार जगत में कन्या,पति का वरण करती है वैसे जीव के लिए जगतपति हैं ईश्वर,जिसे पाने के लिए वरण करने के लिए रखमणी की तरह चातक प्रेम होना चाहिए।दास का भाव रखते हुए भगवत शरन होकर जीवन का यश,पुण्य ,परमार्थ जो कुछ भी है परमात्मा के शरण अर्पित कर दो।


ग्राम बोरई के पावन धरा में दीपक यादव परिवार एवं ग्रामवासियों के सहयोग से आयोजित भागवत कथा यज्ञ सप्ताह के अंतिम दिवस भगवताचार्य स्वामी निरंजन महराज लिमतरा आश्रम ने उपस्थित भागवत भक्तों से कही। निष्काम प्रेम का भाव हमें गोकुल के गलियों से सीखनी चाहिए जहां ब्रजवासी कृष्ण की अनुपस्थिति में भी चौबिसों घंटा कृष्ण का साथ होने का अनुभूति करते हैं। कृष्ण रुखमणी विवाह के सजीव चित्रण से उत्साह से भरे भागवत भक्तों नें वैसे ही कन्या दान का रस्म किये जैसे सच में रुखमणी उसकी ही पुत्री हो । कन्या दान का महत्व बताते हुए कथा प्रवक्ता स्वामी निरंजन जी महराज ने उपस्थित श्रोताओं से आग्रह किया कि जीवन में कन्या दान का सौभाग्य अवशय उठाना चाहिए चाहे बेटी किसी का भी हो। यह व्यवहार जगत का श्रेष्ठ दान होता है।

हर किसी को यथा संभव सहयोग अवशय करना चाहिए। सुदामा यानि ‘स्व दामा यस्य स:सुदामा ‘अर्थात जो अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। मित्रता सुदामा और कृष्ण जैसे होनी चाहिए,जहां न आभाव का भाव हो और न ही प्रभाव का भाव हो। निस्वार्थ रिस्ते का नम सुदामा और सच्ची मित्रता का नाम कृष्ण है। दत्तात्रेय महराज जी के 24 गुरु का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने कहा कि ये चौबीस गुरु और कोई नही थे,बल्कि प्रकृति अंश में पशु,पक्षी,नदी,पहाड़ वृक्ष ही थे जिनसे सीख लेकर ह भी अपना जीवन सरल सुगम कर सकते हैं। हमें सीखने का भाव ताउम्र रखनी चाहिए,प्रकृति अलग,अलग माध्यमों से हमें संदेश देती रहती है। जिससे हमें प्रेरणा लेते रहना चाहिए। जब तक हममें,प्रकृति से हमें मिली सौगातों के प्रति धन्यवाद का भाव नही आयेगा हम कभी खुश नही हो सकेंगे।


भागवत कथा मोक्षदायिनी है,यान कथा श्रवण से हमें काम,क्रोध,लोभ,मोह,मत्सल से मुक्ति मिलती है,जिससे जीवन सहज सरल हो जाता है। नवधा भक्ति में भी श्रवण की भक्ति को सहज,सरल और श्रेष्ठ बताया गया है।यादव परिवार ने आयोजन में पहुंचे सभी भक्तजनों एवं सहयोगियों का धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया।