राजकुमार सिंह ठाकुर
पंडरिया । बैगा संस्कृति के शोधकर्ता और अध्येता राम कुमार वर्मा, भिलाई निवासी ने विगत तीन दिनों तक बैगा आदिवासी क्षेत्र रोखनी, बदना, हथिबुड़ान, महिडबरा सहित कई गांवों में जानकारी के एकत्रित की। उन्होंने बताया कि ऐसे तो हर जीव को ईश्वर ने अपने अंश के रुप में माता का सृजन किया है। यही कारण है कि हर जीव-जंतुओं की माताएं अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी संतान का लालन-पालन और सुरक्षा करती हैं।

उन्होंने बताया कि वे मैकल पर्वत श्रेणियों में बैगा चक में निवास करने वाली बैगा जनजाति माताएं व शिशुवती नारियां अपनी संतान को अधिक से अधिक समय तक अपने तन से लगाएं रहने व बागा बांधने को सुक्ष्म रुप से अवलोकन कर इसके पीछे के रहस्य को जानने और सार्वजनिक करने का प्रयास किया है।उन्होंने बताया कि माताएं अपने नवजात शिशु से लेकर दो ढाई साल तक के बच्चों को हिंसक पशुओं सहित अकेलेपन से बचाने के एक कपड़े या साड़ी से बगल में बागा बांध कर बच्चे को साथ में रखती हैं। इसका लाभ यह होता है कि उन्हें बच्चे की सुरक्षा की चिंता नहीं सताती । समय-समय पर वे बच्चों को स्तनपान बिना किसी संकोच के करातीं हैं । बच्चे मां का निरंतर सानिध्य पाकर खुश व सुरक्षित महसूस करता है । माताएं निश्चिंत होकर अपने घर के काम- काज, बाड़ी,खेत,डोंगर, बाजार-हाट, नजदिक के मेला-मड़ई जाते समय भी नन्हें बच्चों को साथ लेकर जाना एक श्रेष्ठ पालकत्व है। ऐसे में बैगीन शिशुवतियों को *श्रेष्ठ माताओं* की संज्ञा देना सामयिक होगा ।आज की बढ़ती आधुनिकता, शिक्षा व नौकरी पाने की चाहत में शहरी पालक बच्चों को रोबोट बनाने की प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। बच्चों पर पढ़ाई और अच्छी नौकरी पाने की दौड़ में बचपने को मसल रहे हैं। मुंह से बक्का फूटा नहीं कि पूरा-पूरा अंग्रेजी का तोता बनाने से लेकर दुनिया के हर श्रेष्ठ व्यक्तियों की तरह बनाने का सपना संजोए हुए हैं। पर शहरों से दो सौ किलोमीटर दूर और 1500 फिट ऊंची पहाड़ियों व नदियों की तराइयों , ऊंचे-ऊंचे पठारों के बैगा चक में निवारत आदिवासी बैगा समुदाय पालकत्व में श्रेष्ठता का आज प्रदर्शित कर रहे हैं।