दुर्लभ सत्संग : भक्ति ही श्रेष्ठ मार्ग,भक्ति से ही भगवान मिलते हैं – विजयानन्द गिरी महाराज

पंडरिया।ब्लाक के ग्राम रोहरा स्थित केशव गोशाला में सोमवार को भी प्रवचन जारी रहा।सोमवार को प्रवचन में विजयानंद गिरी महाराज ने भक्ति को श्रेष्ठ मार्ग बताते हुए कहा।भक्ति से ही भगवान मिलता है।भगवान से संबंध स्वाभाविक है।लोगों से संबंध माना हुआ है।सांसारिक संबंध 100 साल पहले नहीं था व 100 साल बाद नहीं रहेगा।जबकि भगवान से हमारा संबंध कई जन्मों से है।लोग सोंचते है कि कहां रहूंगा,क्या खाऊंगा।ये चिंता का विषय नहीं है।चिंता का विषय यह है कि मरने के बाद कहां रहेंगे।जीवन की चिंता भगवान करते हैं,लेकिन मरने के बाद की चिंता खुद करनी होगी।जिसके लिए सत्कर्म कीजिये।भगवान के पास जाओ तो प्रेमी बन कर जाओ,संसार के पास जाओ तो सेवक बनकर जाइये।इस भावना से जाएंगे तो सभी जगह सम्मान मिलेगा।
भगवान से मांगना है तो विश्वास मांगों ,भगवान को मांगिये।धन व सुख सुविधा नहीं मांगों।मांगने पर कुछ मिलता है लेकिन नहीं मांगने पर सब कुछ मिलता है।सेवा करोगे तो प्रिय बने रहोगए।संसार मे हर किसी को सेवा चाहिये।संसार सेवा का पात्र है।हमेशा भगवान का बनकर रहो।कुछ बनने की कोशिश मत करना।उन्होंने बताया कि धन में आस्था है तो धन से सेवा कीजिये।गरीब लोगों की सेवा करो,गौ सेवा में लगाओ,अच्छे सत्संग में लगाओ।शरीर से आस्था है तो शरीर से सेवा करो।लेकिन एक बात सत्य है कि सब भगवान का है। श्री गिरी महाराज जी ने भगवान के दिखाई नहीं देने पर बताया कि लोग किसी स्थान में कभी गए नहीं हैं,कभी देखे नहीं हैं उसे नक्से में देखकर मान लेते हैं।

जबकि भगवान ने नदी,पर्वत,सूर्य,चन्द्रमा झरना सहित अनेक रचना रची है।ऐसे रचनाकार भगवान को स्वीकार क्यों नहीं करते हैं।भगवान को देखने की जरूरत नहीं है।उनकी रचना ही भगवान के होने का प्रमाण है।हर रचना में भगवान विराजमान हैं।