पाठकों की पाती में आज अनोखा रक्षाबंधन- डॉ. राजेन्द्र पाटकर स्नेहिल की कलम से…..
एक-एक राखी बाँधूँ, मैं धरा और गगन को,
जो सदा सर्वदा ही, प्रदूषण मुक्त होकर रहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ,मैं जल और वायु को,
मानव हित के लिए,हमेशा शुद्धतम रूप में बहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ,मैं कवियों और कवयित्रियों को,
जो नित नूतन सत्य,धर्म और न्याय की कविता रचे ।
एक राखी बाँधूँ,मैं इस धरा के तमाम वृक्षों को,
विश्व को विमल रखने हेतु,कुल्हाड़ी से सदा बचे ।
एक-एक राखी बाँधूँ,मैं देश की तीनों सेना को,
जो कभी क्षत-विक्षत न हो,अजेय रहकर घर लौटे ।
एक-एक राखी बाँधूँ,मैं बम,बारूद,मिसाइलों को,
जो मानवता के ख़िलाफ़,विस्फोटक होकर भी न फ़टे ।
एक राखी बाँधूँ मैं, धरती के खनिज भण्डार को,
आने वाली कई पीढ़ियों, तक जो खतम न हो ।
एक-एक राखी बाँधूँ,मैं बेटियों और बहनों को,
दुल्हन पिया मन भाए रहे,साथ कोई सितम न हो ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं,आज के नवयुवकों को,
बुद्ध, विवेका, राम बने, हर नशा से मुक्त रहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं, क्रूर अतिवादियों को,
हिंसा जिनके मन न पनपे,हृदय करुणा सिक्त रहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं, ज्ञान और विज्ञान को,
युवाओं को जो रोजगार दे,कोई बेरोजगार न रहे ।
एक राखी बाँधूँ मैं, देश के अन्न के भण्डार को,
जो सदा लबालब रहे, भूख कोई जनता न सहे ।
एक राखी बाँधूँ मैं, धरा के समय के इस चक्र को,
जो सदा ही टिक-टिक कर,भारत के पक्ष में चले ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं, वतन के नव भविष्यों को,
देश का हर नौनिहाल, खुश होकर पालने में पले ।
एक राखी सूरज को बाँधूँ , एक राखी चाँद को,
सूरज सा तेज़ हर युवा बने,चाँद जैसी युवतियाँ रहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं, हर प्रकार की समस्याओं को,
जो कभी पहेली न बने,समाधान की कई युक्तियाँ रहे ।
एक-एक राखी बाँधूँ मैं, अपने फेस बुक मित्रों को,
जीवन में जिनका हर पल,सुख,शांति,समृद्धि रहे ।
और मेरी अच्छी-अच्छी कविताओं को पढ़-पढ़कर,
वाह ज़नाब, क्या खूब, वाह-वाह जो हरदम कहे ।
येन बद्धो बलि राजा………रक्षति तव सर्वदा ।
