संजय साहू अंडा। देश भर की जनजातियों सहित विलुप्तता की कगार पर पहुंच चुकीं जनजातियों की विशिष्ट जीवन शैलियों, कला एवं संस्कृति, जीवन दर्शन, आजीविका संचालन के विभिन्न तौर-तरीकों सहित जीवन रक्षा की प्रणालियों, विकास की वर्तमान अवस्थाओं को स्थितियों को मानवशास्त्रीय अध्ययन के रुप में एक मंच पर लाने की दृष्टि से भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययन शाला की ओर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
इसमें देश भर के आठ राज्यों आसाम, कर्नाटक,उड़ीसा, झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब सहित छत्तीसगढ़ के शोधार्थियों ने सक्रियता के साथ भाग लिया। इसके उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि पद्मश्री अरुण कुमार मरावी, अध्यक्ष कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल सहित संगोष्ठी के संयोजक डॉ.एल.एस. डॉ खाका आदि ने अपने उद्बोधन में जनजातियों की जीवन शैलियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण और उस पर आस्था प्रकट करने जैसे पहलुओं का गहन अध्ययन कर उनके निकट जाकर जानने की प्रेरणा दी।


इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में शोधार्थी राम कुमार वर्मा ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मैकल पर्वत श्रेणियों की शिखरों, तराइयों, घाटियों व पठारी क्षेत्र में निवास करने वाली विशेष रुप से चिन्हित बैगा जनजाति की बालिकाओं और नारियों द्वारा दशहरा से दीवापाली तक किए जाने रीना लोक नृत्य गीतों की प्रचलित परम्पराओं की उत्पत्ति, नृत्य के तरिकों, पहनावा, प्रयुक्त लोकवाद्यों ठिसकी,चटकोला,मांदर , बांसुरी सहित बैगा नारियों द्वारा “तोता” को “रीना” कहे जाने, अपने मन की बातों,नंबर, पीड़ा, समस्या,उसका समाधान आदि को अभिव्यक्त करने के लिए तोते को संबोधित करने को रंगीन स्लाइडों द्वारा प्रदर्शित किया। इनके द्वारा विगत पंद्रह वर्षों से बैगा जनजाति की सांस्कृतिक और लोक साहित्य सर्वेक्षण की दिशा में निरंतर शोधपरक अभिलेखीकरण किया जा रहा है।