निजी विद्यालय में अध्ययनरत आरटीई के बच्चों को नहीं मिलती मूलभूत सुविधाएं…..स्कूलों को समय पर राशि भी नहीं मिलती

पंडरिया। निजी स्कूलों में आरटीई के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों को शासकीय स्कूलों के बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हूं।सरकार द्वारा इन बच्चों को अन्य बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं दे रही है।शासकीय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को मिडिल स्तर तक मध्यान्ह भोजन,गणवेश,निशुल्क पुस्तक,छात्रवृत्ति,सोया दूध,बड़ी प्रदान की जाती है,जबकि निजी स्कूल में पढ़ने वाले आरटीई के बच्चों को केवल छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।ये बच्चे मध्यान्ह भोजन,निशुल्क पुस्तक व गणवेश से वंचित हो जाते हैं।

शासन केवल ट्यूशन फीस देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है।इसी तरह हाई स्कूल में शासकीय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को सरस्वती साइकल योजनान्तर्गत निशुल्क सायकल प्रदान किया जाता है,जबकि निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बालिकाओं को सायकल नहीं सी जाती है।इसी तरह आरटीई अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों को शासन द्वारा अन्य बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं दी जाती है।जबकि इन बच्चों को भी मध्यान्ह भोजन,निशुल्क सायकल,सोयाम दूध व निशुल्क पुस्तकें प्रदान किया जाना चाहिये।


गणवेश व पुस्तक के लिए मात्र 541 रुपये-सीजी स्कूल में आरटीई अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों को पाठ्यपुस्तक,गणवेश व स्कूल बैग आदि खरीदने के लिए शासन द्वारा मात्र 541 रुपये दिए जाते हैं।जिसके लिए बच्चों को कम-कम 2000 रुपये की जरूरत होती है।बताया जाता है कि यह राशि भी स्कूल बंद होते तक बच्चों को मिल पाती है।इसी तरह सीबीएसई स्कूल के बच्चों के लिए 791 रुपये शासन द्वारा दिये जाते हैं,जो ऊंट के मुंह मे जीरा के समान है।शासन को यह राशि बढ़ाकर समय मे दिया जाना चाहिए।


ट्यूशन फीस भी कम-शासन द्वारा आरटीई के बच्चों को पढ़ाने के बदले संबंधित विद्यालय को ट्यूशन फीस दिया जाता है।यह भी पर्याप्त नहीं है।नर्सरी से 5 वी तक के बच्चों के लिए एक वर्ष में 7000 रुपये ट्यूशन फीस दिया जाता है।इसके अलावा 6 वी से 8 वी तक के बच्चों के लिए 11400 रुपये तथा 9 वी से 12 तक के बच्चों के लिए 15000 रुपये सालाना ट्यूशन फीस प्रदान किया जाता है।यह राशि भी प्रतिवर्ष देर से प्राप्त होता है।बताया जाता है अन्य राज्यों में ट्यूशन फीस अधिक है।छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार लागू होने के सन 2010 से यह राशि दी जा रही है।निजी विद्यालय इस दर को रिवाइज करने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं।