दिव्यांग आस को देख लगता है उड़ान पंखो से नही हौसले से होती है, साहित्यकार, संस्थापक, संयोजक समाज सेवक व शिक्षक है दिव्यांग शिवनारायण

अंडा । जहां एक ओर स्वस्थ व्यक्तियों को कुछ भी करने के लिये जी चुराते आपने देखा होगा पर एक दिव्यांग में सब कुछ कर गुजरने का हौसला किसी में हो यह कम दिखता है पर एक ऐसा दिव्यांग दिखे तो अचरज होता है पर डाॅ.शिवनारायण देवांगन "आस" जो शास.उ.मा.शाला अंजोरा (ख)दुर्ग के दिव्यांग व्याख्याता जीवविज्ञान में सब कुछ है। देवांगन आज व्हील चेयर में भी बड़ी उत्साह व हौसला से भरे नजर आते है इनका व्हील पावर का जितना तारीफ करे वो कम ही होगा।

ये स्वयं के बजाय लोगों को आगे लाने निरंतर कार्य करते रहते है जो भी काम मन में ठान ले तो अंजाम तक पहुँचाकर ही रहते है। शाला में शिक्षण कार्य के अतिरिक्त हर गतिविधियों में अग्रणी रहते है और बच्चों को प्रोत्साहित कर आगे बढाने हमेशा प्रयास रत रहते वही कार्यालयीन कार्य मे भी पूर्ण दक्ष है और सबकी मदद करते रहते हैं । साहित्य के क्षेत्र में भी अच्छी पकड़ रखते है स्वयं की काव्य कृति "वक़्त ये कहता है" के प्रकाशन के साथ 30 से अधिक संकलन व संग्रह का सम्पादन व प्रकाशन कर चुके है। सांस्कृतिक क्षेत्र में बच्चों व शिक्षक को प्रोत्साहित करने नियमित कार्यक्रम का आयोजन कर मंच प्रदान कर रहे है सभी को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित करते है कई शिक्षक उन्ही के सहयोग से बड़े-बड़े सम्मान प्राप्त कर चुके हैं । समाज सेवा के क्षेत्र में भी जरूरतमंद को यथायोग्य सहयोग करते है किसी को आर्थिक सहयोग तो किसी को फीस का राशि तो किसी को पुस्तक कापी देकर सहयोग करते है कभी वृद्धा आश्रम में तो कभी दिव्यांगों के बीच जाकर सहयोग करते है। इसके अतिरिक्त भी आस हस्तकला, चित्रकला, नवाचार,कला, साहित्य, लेखन,खेल में भी हुनर रखते है। शिवनारायण देवांगन कभी दिव्यांगता को अपनी कमजोरी नही मानते बल्कि उसका ध्यान न देते हुए हर पल कुछ कर गुजरने का हौसला लेकर काम करते रहते है। इसलिए लगता है उड़ान पंखो से नही हौसले से होती है। आज अपने अच्छे कार्य से सभी को अपना बना लेते है बच्चे, शिक्षक साथी, जनप्रतिनिधि, समाज सेवक सभी इनके कार्य के तारीफ किये बिना नही रहते।