शिक्षक दिवस पर विशेष : मेरी जीवन की श्रेष्ठ शिक्षिका : वेद नारायण ठाकुर,

सीजी मितान डेस्क…..एक ऐसी शिक्षिका जिन्होंने इतना अपनापन दिया इतना स्नेह दिया और अचानक बहुत दूर चली गई यह कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसे अपना सादगी पूर्ण जीवन पसंद था उसे आजकल की मेल जोल में पलने वाले बच्चे से अनभिज्ञ रहना ही उचित लगता था।
जैसे जैसे उसकी पढ़ाई पूर्ण होती है वह अब उच्चतर स्कूल में पहुंच जाता है जहां वो आगे शिक्षा ग्रहण करने के लिये पब्लिक स्कूल तर्रा पाटन का चुनाव करता है।
वो जिस समय वहां प्रवेश प्राप्त करता है उस विद्यालय की अनुशासन देख कर वह डरा हुआ आगे बढ़ता जाता है। वहां मुलाकात होती है, उसकी ऐसे शिक्षिका की जिसको उसने अपने जीवन का एक बेस्ट टीचर मान लिया उसका नाम था श्रीमती रीता सुधाकर जी जो की हिंदी साहित्य की व्याख्याता के पद पर पदस्थ थी। धीरे धीरे उस विद्यार्थी को वो शिक्षिका ऐसे समझने लगती है की उनके जीवन का दायित्व ही उस लड़के को आगे बढ़ाने का हो। हमेशा ही उस लड़के को एक आदर्श विद्यार्थी का दर्जा प्राप्त होता था, शिक्षिका हमेशा उसके मदद को तत्पर रहती यहां तक उस लड़के के परिवार जनों तक इतना संबध स्थापित हो गया था मानो की वो उस लड़के की एक शुभचिंतक रिश्तेदार हो , वो लड़का जब भी उदास होता वो शिक्षिका समझ जाती थी आज ये अपने परिवार वालो से थोड़ा नाराज है इसका चेहरा उतरा हुआ है। वो उस लड़के के पास जाती और उसे समझाती की बेटा जीवन में माता पिता से बढ़के कोई नही होता हमेशा उनकी बातो का बुरा मत माना कर माता पिता है थोड़े बहुत डांट दिए तो क्या हुआ। वो शिक्षिका जितनी उस लड़के के करीब थी उतना किसी से नहीं थी परंतु हां वो ऐसे पहली शिक्षिका थी जब जिसको उस विद्यालय के सभी विद्यार्थी अपना आदर्श मानते थे। उनका पढ़ाने का तरीका सभी शिक्षकों से अलग था। कभी मस्ती कभी मजाक करते हुए शिक्षा अर्जन कराना उनका स्वभाव था। मुझे एक दिन याद आता है जब उसकी एक शिक्षिका नाराज हो गई थी उस लड़के से उसको डर था कि उसका प्रैक्टिकल नंबर कट जायेगा परन्तु उसी दिन सुधाकर मैम आई और समझाई की अरे तू बुरा मत मान वो हमेशा ऐसे ही चिल्लाती रहती है। कोई बात नहीं मैं बात करूंगी मैम से ठीक है। वो लड़का जब जब मुसीबत में रहता हमेशा सुधाकर मैम उसे अपना बच्चा समझ के उस उलझन से निकाल देती। यही नहीं धीरे धीरे वह लड़का सभी शिक्षकों के करीब आने लगा वो लड़का मध्यम वर्गीय परिवार से था इसलिए वो मैम उसको अपने कार्यालय में बुला कर विषयांतर्गत नोट्स दे देती थी जिससे की उसे पैसे से न खरीदने पड़े करके। सुधाकर मैम उस लड़के को हमेशा 3 से 4 दिनों में कॉल करते ही रहती थी जिसमे वो उनके परिवार का हाल चाल और उसकी पढ़ाई की जानकारी लिया करती थी।

मुझे याद है वो दिन जब शिक्षक दिवस था और मैम के लिए मैं पेन लेके गया था परंतु मैम ने बोला बेटा जिस दिन तुम एक अच्छी नौकरी लग जाओगे न उस दिन अपने पैसों से खरीदा हुआ तोहफा देना तब रखूंगी परंतु ये आपके पिता की पैसे से लिया हुआ है मैं इसे नही रख सकती। मैं ने सहमति दी और मुस्कुराया और चला गया ।
इसी बीच उसका 10 वी का एग्जाम खत्म होता है। और उसको परिणाम का इंतजार था, मैम उसको कॉल करती है और पूछती हैं – कैसा गया एग्जाम
वो लड़का थोड़ा दुखी सा बोलता है। हां ठीक गया मैम।
मैम समझ जाती है की इसकी परीक्षा ठीक नही गई है।
इसी बीच उसका का परिणाम आता है, और मैम उसको कॉल करके पूछती है परिणाम आ गया तुमने देखा क्या वेद वो लड़का बोलता है नही मैम तुम्हारा 79% बना है। वो लड़का स्तब्ध रह जाता है क्युकी उसको 90% टारगेट करना था। फिर सुधाकर मैम उसी शाम को उस लडके के पिता जी को फोन लगाती है और पूछती है वेद खुश नही है क्या अपने परीक्षा परिणाम से उनके पिता बोलते है हां वो रो रहा था…. दरअसल परीक्षा के दौरान उस वेद को माता आ जाती है जिसके कारण उसकी पढ़ाई अच्छे से नही हो पाती।
मैम जब वेद से स्कूल में मिलती है तो पूछती है तुम्हारे परीक्षा परिणाम बहुत कम है क्या सोच रहे हो वेद कुछ नही बोल पाता सुधाकर मैम बोलती है तुम पेपर पुनर्मूल्यांकन करा लो मेरे पास उस समय पैसे नही थे। मैम बोली इसका पैसा मैं दूंगी 1000।
वेद ने 2 विषय का पेपर खुलवाया और उसका 6 no. बढ़ गया जिससे की उसके 80%बन गया। वो अब खुश था। धीरे धीरे वो लड़का अब उनको अपने जीवन का श्रेष्ठ शिक्षक मानने लग जाता है।
उसी बीच सुधाकर मैम उस स्कूल की प्राचार्य बन गई सभी जानते थे वेद सुधाकर मैम का प्रिय विधार्थी है इसलिए और छात्र आके बोलते तुम तो सुधाकर मैम का खास स्टूडेंट हो तुमको बहुत अच्छा है।
वेद भी बहुत खुश था की सुधाकर मैम प्राचार्य बन गयी करके।
अब 11वी में प्रवेश लेना था परंतु वेद के पास पैसे नहीं थे सुधाकर मैम ने उसका शुल्क माफ करा दिया।। सुधाकर मैम हमेशा बोलती थी वेद तुम कॉलेज करेगा तो हमारे घर आके रहना हमारे घर का ऊपर वाला प्लॉट हम लोग किराए पर दिए है तुम रहोगे तो पढ़ाई कर लेना पैसे नही लुंगी मुस्कुराते हुए।
सुधाकर मैम हमेशा बोलती थी उस लड़के को की तुमको कोई भी समस्या आए बताना मैं मदद करूंगी। यहां तक वेद की मां को भी बोल दिया था वेद को जिसमे मन है वही पढ़ाई कराना जो भी खर्च लगेगा मैं दे दूंगी।
उसी बीच covid 19 आता है और स्कूल बंद हो जाता है। 6 महीने बाद 9 जनवरी 2021 को खबर मिलती है अचानक की सुधाकर मैम का निधन हो गया। वेद झूठ समझता है वो अपने स्कूल के एक शिक्षक को कॉल करके जानकारी लेता है तब उसको पता चलता है की मैम का निधन covid 19 के कारण हुआ।
वेद ये खबर जानके स्तब्ध रह जाता है उसके लिए तो वो शिक्षिका उसकी मां जैसे ही थी वो बहुत रोता है और खुद को संभालता है की अब मुझको अपने परिवार के लिए और अपने सुधाकर मैम के लिए कामयाब होना ही है। और सुधाकर मैम उसकी यादों में बस गई।

वो लड़का और कोई नही मैं खुद हूं हां ये मेरी खुद की कहानी है मैं जब भी मैम का जिक्र करता हु मेरे आंखों से आंसू आ जाते है उनके जैसे शिक्षिका न कोई थी और न कोई होगी मिस यू मैम आपका वेद मेरा पूरा नाम वेदनारायण ठाकुर है जो की मैम मुझे वेद बोलती थी।