पाटन – ओस की एक बूंद सी होती है बेटियां, तकलीफ हो मां-बाप तो रोती है बेटियां। किसी शायर के इस वाक्य को झूठलाती हुई पाटन के पास चंगोरी गांव की बेटियों ने गरीबी का प्रतिकार करने ई-रिक्शा का स्टेरिंग थाम कर अंचल की बेटियों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है. नाम अनुपमा कुर्रे वह छोटी बहन सानिया कुर्रे ग्राम चंगोरी तहसील पाटन पिता श्री शीतल कुर्रे जूट बोरे की सिलाई करते हैं और सुपेला में रहते हैं. घर में गरीबी थी और एक की कमाई से परिवार चला पाना मुश्किल था इसलिए पिता शीतल ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती राधिका कुर्रे के लिए एक सवारी वाहक ई रिक्शा खरीदा. सीधी सरल ग्रहणी राधिका ई रिक्शा चलाने का साहस नहीं जुटा पाई. तब उनकी दोनों बेटियों अनुपम और सानिया के भीतर एक संकल्प ने जन्म लिया और वह ग्राम चंगोरी में ई रिक्शा चलाने का अभ्यास करने लगी. तहसील मुख्यालय होने व खरीदी और अन्य काम के लिए ग्राम चंगोरी वालों का पाटन आना-जाना लगा रहता है दोनों बहनों ने चंगोरी से बठेना होते हुए पाटन तक की सवारी ढोना शुरू किया जिसमें उन्हें आशातीत सफलता मिली। रिक्शा की उपलब्धता से गांव वालों का आवागमन भी सुलभ हो गया और आज चंगोरी से लेकर पाटन तक इन बेटियों को रिक्शा चलाते हुए देखना सुखद लगता है।
गांव से शहर में तब्दील हो रहे पाटन में यूं तो ई-रिक्शा की भरमार है और अंचल में आवागमन सुलभ करने में ई-रिक्शा काफी कारगर साबित हुआ है मगर यह अंचल की प्रथम दो बेटियां हैं जिन्होंने आय के स्रोत अर्जित करने ई रिक्शा का सहारा लिया और सफल है पूछने पर अनुपमा ने बताया कि वे रोज 400 से 600 तक की कमाई कर लेती है जिनसे उनके जीवन शैली में सुधार हुआ है मगर बात यहीं समाप्त नहीं होती उनका एक बड़ा भाई भी है सूर्यकांत कुर्रे वह भी ई रिक्शा चलाते हैं मगर सवारी ढोने वाली नहीं बल्कि समान परिवहन करने वाली वे रिक्शा किराए पर नहीं उठाते बल्कि रिक्शा में सब्जी भरकर गांव-गांव बेचते हैं. कुल जमा निष्कर्ष यह कि घर में पांच सदस्य जिसमें चार कमाऊ और मां राधिका ग्रहणी कहा जाता है जहां काम करने की नियत हो मेहनत करने का जज्बा हो और साथ में ईमानदारी हो तो ईश्वर भी साथ देते हैं बेरोजगारी का रोना रोने वाले युवक युवतियो के लिए यह परिवार एक मिसाल है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता।

- March 8, 2025
महिला दिवस पर विशेष: चंगोरी कि बेटी ने दिया महिलाशशक्तिकरण का उदाहरण, ई रिक्शा चलाकर परिवार का भरन पोषण कर रही
- by Balram Yadu