विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष : बस्तर की आदि संस्कृति को ‘बादल’ पहुंचा रही है नई पीढ़ी तक…BADAL ने दिया नया मुकाम,मिल रहा हुनर को सम्मान

राजू वर्मा , पाटन ……देश में आदिवासी जीवन और उनकी विविध संस्कृति की बात हो तो बस्तर के बिना अधूरा है। सांस्कृतिक विविधता, असाधारण सुंदर परिवेश जिसमें वे रहते हैं, भौगोलिक अलगाव के साथ – तो बस्तर देश में एक विशेष स्थान रखता है। साहित्य, लोक गीत और नृत्य के साथ-साथ बोली-भाषाएँ यहाँ की आदिवासियों को उनकी विशिष्टता के लिए खड़ा करती हैं। विभिन्न कला रूप, पारंपरिक और देसी गीत- संगीत-वाद्ययंत्र, हस्तशिल्प और पुराने कलाकृति देश भर के पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेने की अदभुत कौशल है।

बस्तर की बरसों पुरानी परम्परा, संस्कृति औऱ आस्था को देश और दुनिया के सामने लाने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा अनुरूप शासन द्वारा 2021 में BADAL (बस्तर एकेडमी ऑफ डांस, आर्ट एंड लिटरेचर) नामक एक विशेष परियोजना की स्थापना की गई थी। यह पहल उन अद्भुत कला रूपों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी, जिन्हें बस्तर के कलाकार प्राचीन काल से ही आगे बढ़ाते रहे हैं ताकि इस लोक कला को औऱ समृद्ध कर भावी पीढ़ियों तक पहुंचाया जा सके।

“बादल”उद्घाटन करते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

“बादल” द्वारा बस्तर की संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य बखूबी किया जा रहा है ,स्थापना से लेकर अब तक “बादल” में लगभग तीन हजार से अधिक प्रतिभागी विभिन्न कलाओं में प्रशिक्षण प्राप्त कर बस्तर की समृद्धशाली संस्कृति से देश दुनिया को परिचित करा रहे हैं,, विगत दिनों खजुराहो में हुए इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में यहाँ के दो युवा कलाकार श्री धनुर्जय बघेल और श्रीवजोगी राम को उनके गोदना आर्ट की वजह से सम्मानित किया गया वहीं श्री गुजराल बघेल द्वारा बनाई गई पेंटिंग को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के जिम कार्बेट नेशनल पार्क में आयोजित प्रदर्शनी में पहला स्थान मिला….

सामाजिक ताना बाना…
बादल में आदिवासी समाज के जानकार लोगों को भी जोड़ा गया है जिससे बस्तर के धुरवा, भतरा, मुंडा, कोया, हल्बा, मुरिया समाज के लोग शामिल हैं। ये अपनी- अपनी संस्कृति के संरक्षण हेतु दस्तावेजी के लिए लगातार कार्य कर रही है।

BADAL उन सभी आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित है जो एक अच्छी अकादमी में होनी चाहिए, जिसमें कार्यालय, प्रशिक्षण भवन, छात्रावास, मेस भवन, दो खुले थिएटर या एम्फीथिएटर, एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो, पर्यटन झोपड़ी व बस्तर की एक प्रदर्शनी भी शामिल है।

बस्तर की आदिवासी समाज और संस्कृति के विद्वान वर्तमान में BADAL अकादमी परिसर में आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाजों, लोकजीवन, त्योहारों, लोक संगीत और लोक नृत्य को संहिताबद्ध और रिकॉर्ड करने पर काम कर रहे हैं।

इसके अलावा, अकादमी में निर्मित तीन भवनों का नाम वीर शहीदों के नाम पर रखा गया है। इनमें प्रशासनिक भवन का नाम शहीद झाड़ा सिरहा के नाम पर, आवासीय परिसर का नाम हल्बा जनजाति के शहीद बल्लेसिंह के नाम पर और पुस्तकालय एवं अध्ययन भवन का नाम धुरवा समाज के शहीद वीर गुंडाधुर के नाम पर रखा गया है।

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से जुड़कर बादल में अब गायन तबला लोकसंगीत और चित्रकला की कक्षाएं भी संचालित की जा रही है।।।

बादल आने वाले समय मे एक ऐसा केंद्र बन जायेगा जहाँ बस्तर के बारे में सभी जानकारी एक स्थान पर मिल जाएगी।

निश्चित ही बादल ने बस्तर की छाप को आम लोगों के दिलो-दिमाग तक पहुंचाने का जो बीड़ा उठाया है, वह भूपेश बघेल की गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की अवधारणा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह भी कर रही।