जशपुर। पठारी क्षेत्रों में टाऊ के सफेद चादर बिछी हुई हैं। पिछले कुछ वर्षों में टाऊ की खेती करने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। उसके पीछे की वजह कम दिन में तैयार होने वाली फसल से अच्छी आमदनी का मिलना है। नवंबर और दिसंबर के महीने में पाठ क्षेत्र में टाऊ की फसल लहलहाती रहती है। जशपुर में उपजने वाला टाऊ दिल्ली, कानपुर ही नहींं तिब्बत, चीन तक निर्यात किया जा रहा है।
इस बार करीब 13 करोड़ से भी अधिक की फसल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। जशपुर जिले के बगीचा, सन्ना और मनोरा तहसील के पाठ क्षेत्रों में लगभग ढाई हजार हेक्टेयर में लगी टाऊ की फसल लहलहा रही है। जिले में टाऊ की फसल पंड्रापाठ, सुलेशा, सन्ना, रौनी, सरधापाठ, देवदांड़, घोरडेगा, भड़िया, महनई, रौनी, छिछली, हाड़ीकोना, नन्हेसर, गजमा के पठारी क्षेत्रों के हजारों एकड़ जमीन में होने लगा है। इन क्षेत्रों के अलावा मैनपाट में टाऊ की पैदावार होती है।

टाऊ का प्रोटीन मनुष्यों के लिए सुपाच्य है : डॉ. रजन
व्यापारी किसानों से 4000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से टाऊ की खरीदी की जाती है। इससे तैयार आटा दिल्ली व अन्य महानगरों में टाऊ का आटा के नाम से 150 रुपए प्रति किलो की दर पर बेचा जाता है। यह आटा व्रत व उपवास के दौरान फलाहार के रूप में उपयोग होता है। डॉं. अभिषेक रंजन बताते है कि टाऊ में प्रोटीन, ऐमिनो ऐसिड्स, विटामीन, मिनरल्स, फाइबर व एंटी ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होने से इसे पौष्टिक खाद्य माना जाता है। इसका प्रोटीन काफी सुपाच्य होता है।