पंडरिया।क्षेत्र के वनों में इन दिनों पलास(टेसू)के फूल निकल गए हैं।जंगल मे ये फूल दहकते हुए दिखाई दे रहे हैं।टेसू के पौधों में फूल लगे हुए हैं,जिसके चलते पूरा वनांचल में लालिमा बिखरी हुई है।जो लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।टेसू का उपयोग अनेक धार्मिक ,आयुर्वेद व त्योहारों में किया जाता है। पलाश के पौधे की डंडी को वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान मंडप में लगाना शुभ माना जाता है। इसके संबंध में मान्यता है कि पलाश के लकड़ी को साक्षी मानकर वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न किए जाते हैं
।कई जगह तो की लकड़ी से बने हुए चौकी में बैठकर वर और वधू का वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होता है।
वही हरतालिका तीज पर नाथ के पौधे टहनिया तोड़कर लगाई जाती है और उसकी पूजा होती है।पलाश के पौधे में माना गया है कि इसमें ब्राह्म, विष्णु और महेश तीनों त्रिदेव का निवास होता है।
हवन में पलाश की लकड़ी का उपयोग अवश्य किया जाता है।


अक्सर चारों धाम की यात्रा के बाद होने वाले हवन में पलाश के लकडी का उपयोग होता है।
पलाश का पौधा जिन क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में मौजूद है वहां पलाश के छाल का उपयोग रस्सी के रूप में किया जाता है।
पलाश के निकलने वाला गोद इतना कठोर और मजबूत होता है कि पूर्व काल में पानी के जहाजों के छेद को बंद करने में इसका उपयोग किया जाता है।
पलाश के पत्तों का उपयोग दोना पत्तल बनाने में किया जाता है।

होली के लिए रंग बनाये जाते हैं-वर्ष में एक बार आने वाला रंगो का त्यौहार होली हमे टेसू की याद अवश्य दिलवाता है। क्योंकि पूर्व काल से लेकर अब तक होली के रंगों में टेसू के फूलों का उपयोग किया जाता था।टेसू के फूल से हर्बल रंग व गुलाल का निर्माण किया जाता है।इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

आयुर्वेद में भी उपयोगी– टेसू का संपूर्ण पौधा औषधि गुणों से भरा हुआ होता है। इसके जड़, तना, शाखा, पत्ती, फूल और फल का उपयोग आयुर्वेद दवा बनाने में किया जाता है।वैद्यराज डॉ गिरिजा कुमार शुक्ला ने बताया कि टेसू के पौधे के विभिन्न भागों जैसे फूल, छाल, पत्ती और बीज का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है।यह चर्म रोग, ज्वर, मूत्रारोग, गर्भाधान रोकने और नेत्र ज्योति बढ़ाने सहित कई बीमारियों में लाभदायक है।
