भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा ग्राम बोरई एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मनाया गया

एकात्म मानववाद और अंत्योदय के सिद्धांत हमें समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता हैं– विधायक ललित चंद्राकर

अंडा।फोटो। दुर्ग ग्रामीण विधानसभा अंतर्गत ग्राम बोरई में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मजयंती समारोह में दुर्ग ग्रामीण व राज्य ग्रामीण अन्य पिछड़ा वर्ग क्षेत्र विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष ललित चंद्राकर सम्मिलित होकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया। पंडित जी के एकात्म मानववाद और अंत्योदय के सिद्धांत हमें समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित किया और उनके सिद्धांतों और विचारों को आत्मसात किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से अंजोरा मंडल अध्यक्ष गिरेश साहू , जनपद सदस्य भानाबाई ठाकुर , ओमेश्वर राजू यादव , सुतीक्ष्ण यादव , छत्रपाल साहू , प्रीत लाल ठाकुर , विधायक प्रतिनिधि शिवकुमारी वैष्णव , संतोष साहू , गजल यादव , थावेंद्र यादव , प्रीत लाल ठाकुर, संतोष यादव , रवि साहू , अश्वनी साहू, संतोष यादव , नरेश साहू , ईश्वर यादव , रामकली साहू , शिवकुमार निर्मल , रितेश साहू , करण साहू , शत्रुहन साहू संतोष साहू , भोलाराम , चाणक् साहू , गोपी साहू , ईश्वर यादव , रवि शंकर साहू , रूपेश साहू एवं बड़ी संख्या में ग्रामवासी व कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

इस अवसर पर दुर्ग ग्रामीण व राज्य ग्रामीण अन्य पिछड़ा वर्ग क्षेत्र विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष ललित चंद्राकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता का नाम रामप्यारी था। उनके पिता रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे और माता धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।

दीनदयाल 3 वर्ष के भी नहीं हुए थे, कि उनके पिता का देहांत हो गया और उनके 7 वर्ष की उम्र में मां रामप्यारी का भी निधन हो गया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आएं, आजीवन संघ के प्रचारक रहे। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुईं।


आगे श्री चंद्राकर ने बताया
अंत्योदय का नारा देने वाले दीनदयाल उपाध्याय का कहना था कि अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिन्दू संस्कृति है। उनका कहना था कि भारत की जड़ों से जुड़ी राजनीति, अर्थनीति और समाज नीति ही देश के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखती है। कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सका है।


उपाध्याय जी के जीवन का रोचक प्रसंग– एक बार एक किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जीप में बैठकर जा रहे थे। कार्यक्रम के तहत सुबह 9 बजे जुलूस निकलने वाला था। इसके लिए वहां बड़ी तादाद में किसान इकट्ठा हुए थे। रास्ते में जीप खराब हो गई।
यह पता चलने पर कि जीप को सुधरने में वक्त लगेगा, उपाध्याय जी बेचैन होने लगे, क्योंकि वे समय के बड़े पाबंद थे। वे ड्राइवर से बोले- तुम जीप सुधार कर लाते रहना, मैं तो चला; और वे तेज चाल से पैदल ही कार्यक्रम स्थल की ओर चल दिए। 5-6 मील चलने के बाद उन्हें कार्यकर्ताओं की एक जीप मिली, जिसमें बैठकर वे ठीक समय पर पहुंच गए।


ऐसे ही एक बार वे एक कार्यकर्ता की मोटरसाइकल की पिछली सीट पर बैठकर कहीं जा रहे थे। ऊबड़-खाबड़ और संकरा रास्ता कंटीली झाड़ियों से भरा था। एक झाड़ी से उनके पैर में गहरा घाव लगा, जिससे खून बहने लगा, लेकिन वे चुपचाप बैठे रहे। गंतव्य पर उतरने के बाद जब वे लंगड़ाते हुए आगे बढ़े तो वहां उपस्थित कार्यकर्ताओं को चोट के बारे में पता चला।
इस पर मोटरसाइकल वाला कार्यकर्ता बोला- पंडित , आपके पांव में इतना गहरा घाव हो गया था तो आपने बताया क्यों नहीं, रास्ते में कहीं मरहम-पट्टी करवा लेते। दीनदयाल बोले- यदि ऐसा करते तो नियत समय में कैसे पहुंचते।