पोला का पर्व मनाया गया,बच्चों द्वारा मिट्टी के बैल बनाकर पूजा-पाठ कर स्कूलों में धूम से मनाया गया


पंडरिया-नगर सहित ब्लाक में गुरुवार को पोला का पर्व पूरे उत्साहपूर्वक मनाया गया।पोला के अवसर पर किसानो ने अपने बैलों को सजाकर पूजा पाठ किया।वहीं मिट्टी से बने बैलों का पूजा अर्चना किया गया। साथ ही बच्चों द्वारा मिट्टी व लकड़ी के बैल का चलाया गया।
पोला पर्व कृषि,बैल व बच्चों से जुड़ा हुआ त्योहार है।
पोला के दिन किसान और अन्य लोग पशुओं की विशेष रूप से बैल की पूजा करते है, उन्हें अच्छे से सजाते हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में पोला के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है। यहाँ बैल व लकड़ी, लोहे व मिट्टी के बैल की पूजा की जाती है।बैल के अलावा चक्की (हाथ से चलाने वाली चक्की) की भी पूजा की जाती है।पूर्व में चक्की के द्वारा ही घर पर गेहूं पीसा जाता था। जिससे तरह-तरह के पकवान बनाकर इनको जाते थे। जिसके चलते मिट्टी के चक्की की भी पूजा की जाती है।पोला के अवसर पर छत्तीसगढ़ का प्रमुख पकवान ठेठरी,खुर्मी व अन्य चीजें भी बनाई गई।पोला के अवसर पर बाजार में रौनक छाई रही।विशेष रूप से कपड़ा दुकानों सहित किराना व जनरल स्टोर पर लोगों की भारी भीड़ लगी रही।
पोला त्यौहार का महत्व
छत्तीसगढ़ कृषि आधारित है,जो आय का मुख्य स्रोत है। ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते हैं। पोला में बच्चे खिलौने के बैल ,चक्की आदि चलाकर मानते हैं।
त्यौहार का नाम पोला क्यों पड़ा
विष्णु जब कृष्ण के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है। तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। बाल्यावस्था में कृष्ण वासुदेव-यशोदा के यहाँ रहते थे। तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था।एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था।जिसे श्री कृष्ण ने अपनी मार दिया था,वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, तब से इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा।
स्कूल में मनाया गया पोला पर्व– गांव के अलावा स्कूलों में भी पोला पर्व मनाया गया।पूर्व मा.शाला व प्राथमिक शाला के छात्र-छात्राओं ने पोला का पर्व मनाया।इस दौरान बच्चों ने मिट्टी के बैल व अन्य खिलौने बनाये।जिसके बाद इसका पूजा अर्चना किये।इस दौरान शिक्षकों द्वारा बच्चों को पोला के पर्व क्यों मनाया जाता है व पोला के महत्व को बताया।इस दौरान प्रधान पाठक मोहन राजपूत,विश्वलता मानिकपुरी,निशा सिंगरौल,गिरिजा पटेल,रसोईया व बच्चे उपस्थित थे।