दुर्ग । दुनिया के हर देश में लोग किसी न किसी देवी-देवता के प्रति आस्थावान होते हैं । विशेष रुप से आदिवासीयों को अपने लोग देवी-देवताओं पर पूर्ण आस्था होती है। इसी कड़ी में भारत सहित छत्तीसगढ़ के विशेष चिन्हित और संरक्षित जनजाति कोल समुदाय के लोगों को अपने लोग देवी-देवताओं पर पूर्ण आस्था और विश्वास है । शिक्षक व लोक संस्कृति के शोधार्थी राम कुमार वर्मा ने छत्तीसगढ़ के गौरेला, पेंड्रा मारवाही, रायगढ़, कोरिया, सरगुजा, बिलासपुर, मुंगेली जिलों में निवास करने वाले कोल जनजाति के लोगों से संपर्क कर उनके आस्था के देवी-देवताओं निकट से देखने, देवस्थान निर्माण करने,पूजा-अर्चना, मान-ध्यान करने को लोकरित आदि को जानने का प्रयास किया। उनके द्वारा पेंड्रा, गौरेला और मरवाही के ग्रामों का भ्रमण कर अध्ययन किया गया। डोंगरीटोला गांव के नंदू कोल सहित 18 ग्रामों के अध्यक्ष घुट्टन लाल कोल 70 वर्षीय कोलानपारा पेंड्रा ने बताया वे ठाकुर देव, दूल्हा देव, ठकुराईन, शक्ति ,कंकाली माता, मरही माता, खेरमाई, नारायण देव, हरदेव बाबा, बूढ़ी माई , शंकर जी , गणेश, हनुमान जी, शारदा माई ,दूरपता माता,दुर्गा माई, बाबा महाराजा, महामाया ,हरदेल बाबा , गुरु महाराज आदि को विशेष रूप से पूजितत करते हैं । साथ ही कोल समुदाय के लोग घर के भीतर, आंगन,बाड़ी सहित गांव के विशेष स्थल और सरहद पर खेरमाई की स्थापना कर संपूर्ण गांव और परिजनों को सुरक्षित करने में लोग देवी-देवताओं के प्रति आस्थावान होते हैं । मूलतः हिंदू धर्म को मानने वाले कोल समुदाय के लोग वर्ष भर के त्योहारों सहित नवाखाई ,दशहरा, दीपावली ,क्वांर व चैत्र नवरात्रि में इन देव स्थानों की साफ-सफाई से लेकर के पूजा-अर्चना अपनी लोक रीति से करते हैं और अपने जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए अपने देवी-देवताओं पर आस्थावान होते हैं।

- January 24, 2022