राजकुमार सिंह ठाकुर
पण्डरिया । ब्लाक अंतर्गत अधिकतर गांवों से बड़ी संख्या में लोग अन्य राज्यों को पलायन करते हैं।पिछले कोरोना काल के दौरान ब्लाक में करीब 8000 मजदूर पलायन से लौटे थे।जबकि शासकीय आंकड़ों के अनुसार ब्लाक से पलायन शून्य था।लेकिन कोरोना संकट ने शासन के शून्य वाले आंकड़ों का पोल खोल दिया था।कुछ ही दिनों में वापस लौटे श्रमिक पुनः पलायन कर चुके हैं।पूर्व में केवल मैदानी गांवों से ही लोग पलायन करते थे,किन्तु इस वर्ष वनांचल से भी बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं।बैगा-आदिवासी समुदाय जो ब्लाक मुख्यालय तक नहीं आते थे।वे अपने संस्कृति को सहेजे हुए वनांचल तक ही सिमट कर रहते थे।अब बैगा आदिवासी समाज के लोग भी शहरों की ओर रोजगार की ओर पलायन कर रहे हैं।इसका मुख्य वजह क्षेत्र में रोजगार मुहैया नहीं होना है।शासकीय कार्य नहीं होने के कारण बैगा आदिवासी भी शहर की ओर आकर्षित हो रहे हैं।जिससे इन्हें भटकने के साथ इनकी संस्कृति पर भी संकट खड़ा हो रहा है।क्षेत्र में शासन को इनके रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।जिससे इनके पलायन को रोका जा सके।बैगा आदिवासी ज्यादा दूर पलायन नहीं करते हैं।इन्हें ब्लाक अंतर्गत ,जिले व आस-पास के जिले के गुड़ फैक्ट्री, ईंट भट्ठा,छोटे कारखानों में मजदूरी के लिये रखे जाते हैं।ठेकेदार द्वारा वनांचल में जाकर इन्हें लाया जाता है।

शिक्षा पर बुरा प्रभाव-वनांचल के बैगा आदिवासी धान कटाई,गन्ना कटाई,ईंट भट्ठे के काम चालू होने पर तथा गुड़ फेक्ट्री में काम चालू होने पर पलायन करते हैं।जिससे समाज के शिक्षा पर भी का बुरा प्रभाव पड़ रहा है।इन्हें मजदूरी के लिए चार से पांच महीने ठेकेदारों द्वारा लाया जाता है,जिनके साथ इनके बच्चे भी होते हैं।जिससे ये बच्चे कहीं भी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।वर्ष में ये बच्चे चार से छः महीने बाहर चले जाते हैं।यही कारण है कि बैगा आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के लिए करोड़ो खर्च के बाद भी आज शिक्षा का स्तर ऊपर नहीं उठ रहा है।
“क्षेत्र से होने वाले पलायन की जानकारी मंगाई जायेगी।सभी पंचायतों को कार्य चालू करने का निर्देश जारी कर दिया गया है।कार्य के नाम से पलायन नहीं हो रहा है।”
बीएल,मेहरा,कार्यक्रम अधिकारी ,नरेगा पण्डरिया।