✨शीर्षक – गरीबी✨
(गरीबी एक अभिशाप)
- मैने गरीबी को, भूखे रहके भी सोते देखा है।
मैने गरीबी को,पसीने से तिर बितर देखा है।
इंसान की सोच नई थी मगर -2
मैने गरीबी को रोते हुए देखा है। - वो दिन था, जब हॉस्पिटल के चक्कर काटने पड़ गए थे,
गरीबों के लिए सीट की कमी, अमीरों की झोली भरते देखा है।
उसी सीट को मैने, पैसे में बिकते देखा है।
मैने गरीबी को मरते हुए देखा है।
मैने गरीबी को रोते हुए देखा है। - अपने हक के पैसों को, मैंने लूटते देखा है।
दफ्तर की दस चक्कर और रिश्वत को पनपते देखा है।
हां मैं गरीब हूं साहेब – 2
मैंने अपने पिता के आंसू को, रिसते देखा है। - इंसानियत भी शर्मसार हो गई,गरीबी से
दो वक्त की भोजन के लिए गरीबों को तरसते देखा है।
अमीरों के पैर के नीचे, गरीबों को कुचलते देखा है।
मैंने गरीबी को बहुत करीब से देखा है।
मैंने गरीबी को रोते हुए देखा है। - पढ़ाई छूट गई पैसों से, दवाई छूट गई पैसों से
गरीबों की घर की खुशियां को लूटते देखा है।
मैने गरीबी को बहुत करीब से देखा है।
मैने गरीबी को रोते हुए देखा है।
कवि का नाम – वेदनारायण ठाकुर
पिता – रमेश कुमार ठाकुर
पूर्व छात्र पब्लिक स्कूल तर्रा
ब्लॉक पाटन जिला दुर्ग (छग)
6268830757


